443/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उत्कट प्रेम
भक्ति ईश्वर की
सदा निष्कपट भाव।
आदि प्रेममय
मध्य प्रेममय
अंत प्रेम रस पूर्ण।
घृणा नहीं है
किसी जीव से
है संतुष्ट विघूर्ण।।
मरें काम्य की
सभी वासना
मात्र ईश में चाव।
जब तक घेरें
जगत -वासना
उदय न होता प्रेम।
झूठी भक्ति
मूर्ति की पूजा
कुशल न कोई क्षेम।।
भक्ति कर्म से
ज्ञान ,योग से
सदा श्रेष्ठ है नाव।
ज्ञान भक्ति
अपनाएँ कोई
या हो योगाधार।
साधन साध्य
भक्ति है केवल
प्रेमादर्श विचार।।
मुक्ति और
उद्धार सभी का
हो जाता अलगाव।
भक्त चाहता
भक्ति अहैतुक
मैं ईश्वर दो एक।
प्रेम हेतु ही
प्रेम भक्ति में
इतना शेष विवेक।।
'शुभम्' भक्ति -सुख
है सर्वोपरि
एक यही ठहराव।
शुभमस्तु !
26.09.2024●2.15प०मा०
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