419/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कुछ - कुछ कहते नभ के तारे।
हमें मिटाने हैं अँधियारे।।
हिल-मिल कर हमको है रहना।
सदा एकता अपना गहना।।
लाने हैं नभ में उजियारे।
कुछ - कुछ कहते नभ के तारे।।
जितनी भी हो शक्ति लगाना।
रजनी को दिन - सा चमकाना।।
बनें चाँद - सूरज के प्यारे।
कुछ - कुछ कहते नभ के तारे।।
'शुभम्' नहीं कमजोर जानना।
करना है हर हाल सामना।।
सबके ही हों सदा दुलारे।
कुछ - कुछ कहते नभ के तारे।।
शुभमस्तु !
16.09.2024◆3.00आ०मा०
★★★
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