सोमवार, 2 सितंबर 2024

ईमानदारों का देश [ व्यंग्य ]

 375/2024

 

 © व्यंग्यकार

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 विश्व के कुल 195 देशों में अपना भारत देश सबसे अधिक ईमानदार है।यदि आप चाहें तो लाखों जुगनुओं की टोर्च लेकर इस तथ्य की खोज कर सकते हैं।यहाँ का कोई दुकानदार चाहे समय पर दुकान खोले या न खोले किन्तु इस देश का शिक्षक अपने काम और ड्यूटी के प्रति सर्वाधिक सत्यनिष्ठ है। बेचारा अपने घर - गृहस्थी, खेती-बाड़ी,दुकान आदि के काम छोड़कर ठीक समय पर विद्यालय में हाजिर हो लेता है।कौन कहता है कि वह समय से क्लास नहीं लेता।इस देश के प्राइमरी और जूनियर स्कूल के शिक्षक का वेतन मुश्किल से आठ-दस लाख से अधिक नहीं होता ।इसके बावजूद वह अपनी पूरी निष्ठा से वर्ष भर काम करता है।लेट होना क्या होता है,इससे तो वह परिचित ही नहीं है।कौन कहता है कि वह तो अपनी खेती - बाड़ी या दुकान में व्यस्त रहता है। बच्चों की शिक्षा की ओर उसका कोई ध्यान ही नहीं है।सरकार को उसकी निष्ठा पर तनिक भी विश्वास नहीं है,इसलिए उसकी उपस्थिति का डिजिटल फरमान जारी कर देती है। इस देश का शिक्षक तो जगत गुरु है।उससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। वह सबको ही सीख देता है। वह ईमानदारी और कर्मठता का पावन आदर्श है।

 केवल बेसिक और जूनियर शिक्षकों की ही बात नहीं ,इनसे भी अधिक उत्तरदायी और कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक माध्यमिक और उच्च शिक्षा के होते हैं। वे भी बिना नागा समय से विद्यालय जाते हैं और राजनीति आदि में समय बर्बाद नहीं करते।उच्च शिक्षा के प्रोफेसरों का वेतन पच्चीस तीस लाख है तो क्या हुआ। बेचारे आठ आठ घंटे कालेज में और उसके पहले और बाद में घर के क्लास रूम में कितनी मेहनत करते हैं ,तब उनकी दाल-रोटी का गुजारा मुश्किल से हो पाता है।वे चार पहिए की गाड़ी इसीलिए तो रखते हैं,कि समय से कालेज पहुँचकर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकें। उधर सरकार है कि उनके पीछे ही पड़ी रहती है कि डिजिटल अटेंडेंस लगाओ। उनके ऊपर तनिक भी विश्वास ही नहीं है।यदि वे ट्यूशन करते हैं ,तो क्या बुरा करते हैं? कितनी मेहनत से पढ़ाते हैं बेचारे। फिर भी उनके ऊपर आरोपों -प्रत्यारोपों की झड़ी लगाई जाती है कि इनका कोर्स इनके घर की क्लास में पूरा होता है। कॉलेज में तो पढ़ाते ही नहीं हैं।

 शिक्षकों के बाद राजस्व,विभिन्न कार्यालयों,डाक,बैंक,पुलिस,कचहरियों,ब्लाक,तहसील, जिला मुख्यालय के तमाम कर्मचारी और अधिकारी अपनी नियमित ड्यूटी के बाद भी अपनी कर्मठता का परिचय देते हैं। फिर भी उन पर ऊपरी आय सृजित करने का झूठा आरोप लगाया जाता है।समय पूर्व गंतव्य पर पहुँचना और समय पश्चात दफ्तर से लौटना उनकी दैनिक चर्या का एक अहम हिस्सा है।फिर भी उनके लिए डिजिटिलाइजेशन करना उनके साथ कितना बड़ा अन्याय है? 

 शिक्षकों ,कर्मचारियों और अधिकारियों के बाद यदि व्यापारियों और दुकानदारों की निष्ठा की बात की जाय तो अप्रासंगिक नहीं होगा। देश की जनता के हित में यदि किसी कलाकार ने धनिये में गधे की लीद, हल्दी मिर्च में रंग,दूध में पानी,काली मिर्च में पपीते के बीज,आटे में चावल या कोई अन्य सामान,सरसों के तेल में पामोलिव ऑयल,घी में चर्बी की मिलावट कर दी तो कौन सा बड़ा तूफान खड़ा हो गया।ये सभी मिलावट खोर डॉक्टरों के शुभचिंतक हैं।यदि वे मिलावट नहीं करेंगे तो बेचारे डॉक्टर तो भूखे ही मर जायेंगे। इसलिए इस देश में मिलावट एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। इसके बिना व्यवसाय लँगड़ा हो जाएगा।मेरा देश है ईमानदारी की जलती हुई मशाल।अब इसमें जनता जले या उसकी खाल।देख ही रहा है सारा देश फिल हाल।पर इन तथाकथित 'ईमानदारों' के बने रहने चाहिए गाल लाल। देश का हर ईमानदार ठोक रहा है ताल।उसकी निष्ठा ही तो बनी हुई है उसकी ढाल। अब आपको ज्यादा क्या बताना समझाना यह देश ही है बेमिसाल। अब इस निष्ठा भाव को देखकर आपकी भी तो नहीं टपकने लगी राल?

 इस देश के कर्णधार इस देश के 'महान नेतागण' हैं। यह देश उन्हीं के मजबूत कंधों पर ही तो टिका हुआ है।उनकी निष्ठा पर भी भला कोई प्रश्न चिह्न लगाया जा सकता है?उनके लिए उपस्थिति की तो कोई बात ही नहीं है। वे तो सर्व शक्तिमान और सर्वत्र विद्यमान हैं।वे भाषण के मंच पर सदा 'समय से' ही विराजते हैं।कभी चार -छः घण्टे देर हो भी जाये तो क्या फर्क पड़ता है।इस देश का श्रोता वर्ग खाली और निठल्ला तो है ही।उसे नेताजी के अमृत वचन सुनने ही हैं।इसलिए वह अपने स्थान से तिल मात्र भी नहीं हिलता। बिना सुने पूरा भाषण उसे 'भक्ति' का पुण्य नहीं मिलता।देश में यदि नेता न हों तो देश के विकास के पहिए का चलना तो दूर की बात है,उसका पिपीलिकावत रेंगना भी असम्भव हो जाए।नेता ही तो देश को चला रहे हैं।इसीलिए तो वे टॉल फ्री गाडियाँ दौड़ा रहे हैं।लाखों नहीं,करोड़ों की फ्री सुविधाएँ पा रहे हैं। पाएँ भी क्यों न ! ये देश भी तो उन्हीं का है। देश के असली 'देशभक्त' तो नेतागण ही हैं।आज उनका स्थान देवी देवताओं और पुराने भगवानों से भी ऊपर है। जरूरत होने पर भगवान के दर्शन हो सकते हैं ;किन्तु नेताजी उनसे भी 'सुपर भगवान' हैं।नेता-दर्शन एक दुर्लभ प्रक्रिया है। वे समय से क्यों चलें,समय को ही उनके साथ चलना पड़ता है।

 देश के कोने - कोने जल थल और आकाश में सर्वत्र खोजने पर यही शोध हुआ है कि इस देश के शिक्षक, नेता, कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी,नर -नारी,हल्के या भारी, दूध या दारू से करते गुजारी, समय निष्ठ ,कर्तव्यनिष्ठ और देशनिष्ठ हैं। भूलकर भी उन पर शक -ओ - सुबह करना सर्वथा असंगत और अवांछनीय होगा। यही तो देश के आदर्श हैं।उनसे डिजिटल उपस्थिति की आशा करना व्यर्थ है,क्योंकि उनके विरोध के उग्र रूप को सहन करना असम्भव हो जाएगा।कभी वे काली पट्टी बांधेंगे तो कभी बसें और ट्रेनें भी नहीं चलने देंगे।नतीजतन भारत ही बंद हो जाएगा। तात्पर्य यही है कि मेरा समग्र देश ईमानदार था ,ईमानदार है और ईमानदार रहेगा। उसकी घड़ी में शक की सुई लगाना भी अन्याय होगा।यद्यपि अन्य आय तो सबको ही चाहिए। चाहे वह जैसे भी मिले, जहाँ से भी मिले ,जिससे भी मिले। बस मिलनी चाहिए।जन - जन की 'ईमानदारी'के मूल में यही सिद्धांत कार्य करता है। शुभमस्तु ! 

01.09.2024●8.45प०मा० 

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