442/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मूर्ति पुरानी
विश्वासों को
तोड़ें , रखें न पास।
ज्ञान बिना हो
मोक्ष - लाभ क्यों
तत्पर रहना मीत।
जन्म मृत्यु
के साथ भयों से
हम सब परे सभीत।।
श्रेयस है
आत्मा का उत्तम
उसका ज्ञान - प्रयास।
जिसको तू
'मैं' 'मैं' कहता है
तुझे न उसका ज्ञान।
नहीं पहुँचतीं
वहाँ इन्द्रियाँ
और विचार न भान।।
विषयी है वह
कभी ज्ञान का
विषय न होता भास।
इन्द्रिय -ज्ञान
ससीम तुम्हारा
कारण - कार्य प्रधान।
यह संसार
सत्य की छाया
सुख -दुख एक समान।।
'शुभम्' जगत
अभिव्यक्ति ईश की
कुछ यथार्थ का वास।
शुभमस्तु !
26.09.2024●1.00प०मा०
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