440/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पीपल की
फुनगी पर बैठा
शरमाया-सा घाम।
लौट रहे हैं
घर को पाखी
अपने-अपने नीड़,
बना कतारें
लंबी-लंबी
है अंबर में भीड़,
लगता है
दिन भर का निबटा
उदर-पूर्ति का काम।
लटकाए हैं
अपनी ग्रीवा
लौट रहे घर बैल,
थका स्वेद से
सिक्त कृषक अब
जाता अपनी गैल,
चटनी के सँग
रोटी खाता
फिर करता आराम।
मुनिया आकर
गले मिली है
मिला देह को चैन,
अम्मा की
कर रही शिकायत
मधुर तोतले बैन,
'शुभम्' आ रहा
करवा का दिन
ले प्रियतम का नाम।
शुभमस्तु !
26.09.2024●10.15आ०मा०
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