सोमवार, 23 सितंबर 2024

देश -देश चिल्ला रहे [दोहा गीतिका]

 435/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देश - देश  चिल्ला  रहे, चलें  चाल प्रतिकूल।

नेतागण  इस  देश  के, नित्य  बो रहे   शूल।।


जिसकी  पूँछ  उठाइए,  निकला मादा   शुद्ध,

ज्ञात  हुआ   यह  बाद में,चुनने में की   भूल।


कूड़ा - क्षेपण    की  नहीं, जहाँ योग्यता  लेश,

ग्रीवा  में  उसकी  पड़े,  नव पाटल के   फूल।


दूषित   चाल - चरित्र   हैं, लूट  रहे नित   देश,

उनसे  आशा  व्यर्थ    है,  फेंकें   काट   समूल।


आशाएँ       धूमिल   हुईं,    खेवनहारे   चोर,

सुमन  खिलें  आशा यही  ,उगने  लगे  बबूल।


जनता  सारी   भेड़   है,  चलती  आँखें   मूँद,

चले  न    सोच   विचार के,चलती ऊलजलूल।


'शुभम्' न भावी देश की,उज्ज्वल लगती आज,

झूठ   मिलावट  लीन जो,शेष न एक    उसूल।


शुभमस्तु !

23.09.2024◆6.00आ०मा०

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