बुधवार, 18 सितंबर 2024

जंगल में मंगल [ बालगीत ]

 420/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जंगल   में   मंगल    कर   आएँ।

चलो     साथियो    नाचें  - गाएँ।।


घनी    झाड़ियाँ    काँटों    वाली।

बजा  रहीं    पत्तों   की    ताली।।

काँटे  नहीं  कहीं     चुभ    जाएँ।

जंगल  में     मंगल  कर   आएँ।।


ऊँची  - नीची    भी    कँकरीली।

ऊबड़ - खाबड़  भूमि    वनीली।।

हाथ - पैर   को    शीघ्र    बचाएँ।

जंगल  में  मंगल     कर    आएँ।।


'शुभम्'    एक   बहती  है  सरिता।

करें  नहान   थकन   की   हरिता।।

पके    हुए    फल     ढूँढ़ें     खाएँ।

जंगल  में     मंगल     कर   आएँ।।


शुभमस्तु !


16.09.2024◆3.30 आ०मा०

                      ★★★

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