420/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जंगल में मंगल कर आएँ।
चलो साथियो नाचें - गाएँ।।
घनी झाड़ियाँ काँटों वाली।
बजा रहीं पत्तों की ताली।।
काँटे नहीं कहीं चुभ जाएँ।
जंगल में मंगल कर आएँ।।
ऊँची - नीची भी कँकरीली।
ऊबड़ - खाबड़ भूमि वनीली।।
हाथ - पैर को शीघ्र बचाएँ।
जंगल में मंगल कर आएँ।।
'शुभम्' एक बहती है सरिता।
करें नहान थकन की हरिता।।
पके हुए फल ढूँढ़ें खाएँ।
जंगल में मंगल कर आएँ।।
शुभमस्तु !
16.09.2024◆3.30 आ०मा०
★★★
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