391/2024
सावन के घन काले - काले।
छाए नभ में बड़े निराले।।
सभी मनाएँ रक्षाबंधन,
घर - घर में हों नए उजाले।
भगिनी बाँधे राखी कर में,
रक्षक भ्राता भोले -भाले।
श्रवण- चित्र पुजते हैं घर -घर,
परम्परा से पुजने वाले।
हरी भुजरियाँ बहन बाँटतीं,
हर्ष मुदित मन पर्व मना ले।
लातीं बहन मिठाई घृतवर,
सावन सरसे कजरी गा ले।
'शुभम्' झरें झर- झर -झर बूँदें,
कलकल सरिता छल छल नाले।
शुभमस्तु !
09.09.2024●9.15 आ०मा०
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