431/2024
©शब्दकार
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
[भूख,रोटी,मजदूर,श्रम,सत्ता]
सब में एक
तन - मन की हर भूख के,साधन सुलभ हजार।
कर्मशील पाते उन्हें, उनको विविध प्रकार।।
भूख बिना आनंद क्या,भोजन का हे मीत।
सूखी भी रोटी मिले, लेती व्यंजन जीत।।
रोटी के पीछे फिरे, भ्रमित सकल संसार।
करता नीति - अनीतियाँ,भूख उदर का भार।।
मिले एक रोटी भले,अर्जित श्रम से नेक।
नहीं चाहिए और की, लगी झूठ की टेक।।
स्वेद बहाए देह का, करता श्रम मजदूर।
जीवन में सबको नहीं, मिले भाग्य भरपूर।।
काम कठिन मजदूर का,फिर भी सदा अभाव।
घरनी को साड़ी नहीं, डूब रही गृह - नाव।।
श्रम का फल मीठा सदा,पाना है जो मित्र।
इतना स्वेद बहाइए, महक उठे ज्यों इत्र।।
अर्जित श्रम से रोटियाँ, देतीं सुख - संतोष।
सोना भी देता नहीं, भरा अन्य का कोष।।
नेता सत्ता- भूख का ,होता है पर्याय।
देशभक्ति के ढोंग से, बढ़ा रहा धन - आय।।
केंचुल ओढ़े भक्ति की, सत्ता में नर लिप्त।
जनता के द्वारा वही, हो जाते उत्क्षिप्त।।
एक में सब
तिकड़म से सत्ता मिले, श्रम से मिटती भूख।
रोटी हो मजदूर को, जल चाहे ज्यों रूख।।
शुभमस्तु !
18.09.2024●7.00आ०मा०
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