408/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सावन में घन झर - झर बरसे।
हरियाली से धरती सरसे।।
रिमझिम - रिमझिम झरती बूँदें।
गिरे आँख पर आँखें मूँदें।।
पशु - पक्षी नर - नारी हरसे।
सावन में घन झर - झर बरसे।।
भरते ताल - तलैया सारे।
खेत लबालब लगते प्यारे।।
वीरबहूटी को हम तरसे।
सावन में घन झर- झर बरसे।।
'शुभम्' करें टर -टर नर मेढक।
लगा नयन पर अपने ऐनक।।
नहीं निकल पाते हम घर से।
सावन में घन झर -झर बरसे।।
शुभमस्तु !
15.09.2024◆3.00प०मा०
★★★
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें