रविवार, 8 सितंबर 2024

साँप से पुलिस भी डरती है [व्यंग्य]

 386/2024 


 

 ©व्यंग्यकार 

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 डरते सभी हैं।सबके डर के आकार प्रकार और पात्र अलग -अलग हो सकते हैं।संसार में भय के अनेक उदाहरण हैं। कारण भी अनेक हैं। जैसे :पति पत्नी से डरता है,शिक्षक शिष्यों से डरता है, पहले समय में शिष्य शिक्षक से डरता था। यह सब समय का उलट फेर है।अब तो कुम्हार को भी अपने पालतू गधे की दुलत्ती से डर है।नेताओं से अधिकारी डरता है।अधिकारी से कर्मचारी डरता है।पुलिस से अब न चोर डरता है और न ही डाकू।वह तो उसके लिए भी तैनात रखता है रायफल और चाकू। हाँ, एक भला आदमी पुलिस से अवश्य डरता है कि कब रस्सी का साँप उसके गले में न डाल दिया जाए! और एक भले आदमी की आदमियत पर दाग लग जाए।वनराज शेर से हिरण ,खरगोश तो डरते हैं, किंतु चूहा नहीं डरता।चूहा बिल्ली से डरता है।बिल्ली कुत्ते से डरती है। कुत्ता डंडे से डरता है।एक टुकड़े की खातिर वह आदमी की गुलामी करता है। यह भी डर के ही कारण है।

  एक थाने में साँप निकल आया।तो पुलिस वाले अपनी -अपनी कुर्सी छोड़कर थाने से बाहर चले गए।थाना पल भर में खाली हो गया।जिसके मुँह से सुनाई पड़ता :साँप! साँप !! बस साँप- साँप ही सुनाई पड़ने लगा।अरे भाई !तुम तो पुलिस हो ,उसे गिरफ्तार कर लो। पर कहाँ! वे तो बस आदमियों को ही गिरफ्तार कर सकते हैं, और किसी को गिरफ्तार करना पुलिस के पैनल कोड में नहीं आता। भले वे अपने पैनल कोड की अवहेलना कैसे कर सकते हैं ! साँप तो उन्हें भी अपनी गिरफ्त में ले सकता है न ? 

  मतलब यह हुआ कि हर किसी को हर कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता। तो फिर साँप पुलिस से क्यों डरे ! साँपों की गिरफ्तारी पुलिस के कार्य क्षेत्र में नहीं है। इसलिए साँप निडर,निर्भय घूम फिर रहे हैं। जहाँ चाहते हैं, वहाँ टहल - बहल रहे हैं। जिस देश में पुलिस से अधिक मजबूत साँप हों ,वहाँ पर पुलिस मजबूर ही है।इसलिए उसे उनके लिए थाना अर्थात अपना थान (स्थान) भी खाली करके भागना पड़ता है। इसी में उनकी खैर है। वरना भला साँपों से बैर कौन लेना चाहेगा। 

 डर किसी की अपनी कमजोरी का नाम है।कोई किसी से क्यों डरता है।यह डर का विशेष मनोविज्ञान है। माँ -बाप से डरना संतान के लिए उनका सम्मान बोधक है।पर आजकल की ऐसी भी संतानें और बहुएँ हैं ,जो अपने माँ -बाप या सास -ससुर को घर से निकाल बाहर कर दे रही हैं।ऐसे माँ-बाप भला अपनी ही संतति से डर रहे हैं। डरें भी क्यों न ! इज्जत तो चली ही गई !तब क्या हुआ कि जान भी न चली जाए ! समाज और लोक मर्यादा के कारण वे किसी को बता भी नहीं सकते।उन्हें भी डर का भूत सता रहा है।बहू ननद से डर रही है कि कहीं वह उसका स्थान न प्राप्त कर ले ! माँ बाप उससे अधिक उसे महत्त्व न देने लगें ,इसलिए वह भाभी के हर काम काज के छोटे -छोटे छेदों को बड़ा करने में लगी रहती है। अब बहू बेचारी डरे नहीं तो क्या करे ! जो अभी तैरना सीख ही रहा है ,वह पानी में घुसने से डरेगा ही।यही नव वधुओं का हाल है। 

 सन्त कवि तुलसीदास ने भय का आसन और भी ऊँचा करते हुए कहा है: 'भय बिनु होय न प्रीति,लाख करौ बैरी की सेवा।: डर या भय प्रेम का कारण भी बन सकता है। इस भय या डर के कारण दुनिया के बड़े -बड़े काम होते देखे गए हैं।कोई डांट के डर से काम करता है तो कोई बेइज्जत होने में डर से करता है। यदि ये डर न होते ,तो काम भी पूरे न होते। यह डर का सकारात्मक प्रभाव है।मार खाने या बेइज्जती के डर से छात्र गृह कार्य पूरा कर लेता है।जो निडर है, वह देश को खा रहा है।उसे किसी का भी डर नहीं। भगवान का भी नहीं।जो स्वर्ग नरक नहीं मानता ,उसे अपने कुकर्म का भी डर नहीं है।जो नास्तिक है ,वह किससे डरे ?और क्यों डरे? डर तो डर है, जो डर पर निर्भर है।वह आदमी घर -घर है।भले साँप विषहीन हो ,पर साँप के नाम से तो पुलिस को भी महा डर है। क्या किसी ने देखा ?वह गया किधर है? 

 शुभमस्तु ! 

 08.09.2024●2.30प०मा० 

 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...