गुरुवार, 5 सितंबर 2024

उर आनंद विभोर [ गीत ]

 379/2024

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पावन पावस

सावन बरसे

उर आनंद विभोर।


छतरी थाम

हाथ में अपने

बैठी रमणी नेक।

भीग रही 

वर्षा - जल में वह

मग्न रखे उर टेक।।


ध्यान लगाए

मानो तपसी

स्नात देह हर पोर।


कभी - कभी

आते जीवन में

अल्प विरल क्षण चार।

हो निश्चिंत

जगत -बंधन से

मानव   को   उपहार।।


हम ही हैं

केवल दुनिया में

उठती यही हिलोर।


निर्भय मन में

नहीं किसी का

भय चिंता का भार।

गरज रहे

बादल घड़-घड़ स्वर

बुँदियाँ  करें  दुलार।।


'शुभम्' समय का

पता न चलता

नाच रहे  वन  मोर ।



शुभमस्तु !


02.09.2024●11.00प०मा०

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