379/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पावन पावस
सावन बरसे
उर आनंद विभोर।
छतरी थाम
हाथ में अपने
बैठी रमणी नेक।
भीग रही
वर्षा - जल में वह
मग्न रखे उर टेक।।
ध्यान लगाए
मानो तपसी
स्नात देह हर पोर।
कभी - कभी
आते जीवन में
अल्प विरल क्षण चार।
हो निश्चिंत
जगत -बंधन से
मानव को उपहार।।
हम ही हैं
केवल दुनिया में
उठती यही हिलोर।
निर्भय मन में
नहीं किसी का
भय चिंता का भार।
गरज रहे
बादल घड़-घड़ स्वर
बुँदियाँ करें दुलार।।
'शुभम्' समय का
पता न चलता
नाच रहे वन मोर ।
शुभमस्तु !
02.09.2024●11.00प०मा०
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