शनिवार, 28 सितंबर 2024

समय के साथ [अतुकांतिका]

 439/2024

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समय के साथ

बदल जाना पड़ता है,

अन्यथा समय की दौड़ में

पिछड़ जाना पड़ता है,

समय के साथ चलें

इसी में समझदारी है,

वरना समय की

तलवार दुधारी है।


खड़े रह गए जो लोग

वे आज भी 

वहीं के वहीं खड़े हैं,

कुचलती रही दूब

पैरों तले

और वे हो गए बरगद बड़े,

बरगद भी ऐसे 

जो सबको

छायादान कर रहे हैं,

तप्त धूप में जो प्राणी

उनकी शरणगाह बन रहे हैं।


जिओ तो ऐसे जिओ

कि मानवता के लिए

निदर्शन बन जाओ,

किसी को बढ़ते हुए 

देखकर मत चिढ़ जाओ,

मानव हो 

मानवता का पाठ पढ़ो

मानवता में ढल जाओ।


'शुभम्'  आगे बढ़ जाएँगे 

राजमार्ग पर हस्ती,

और तुम नौ- नौ आँसू बहाओगे

देखोगे अपनी पस्ती,

देश और समाज में

जगह बनाना भी नहीं

इतनी सस्ती,

अंततः सड़क के श्वान

सड़क पर भौंकते ही

रह जाते हैं,

और वे हस्ती 

अपनी मस्ती में आगे

बढ़ जाते  हैं ।


शुभमस्तु !


26.09.2024●3.30 आ०मा०

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