426/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बढ़ती ठंड अलाव जलाएँ।
तापें आग हर्ष हम पाएँ।।
दादी माँ को शीत सताए।
ठिठुर - ठिठुर कम्बल में जाए।।
गरमी का कुछ सृजन कराएँ।
बढ़ती ठंड अलाव जलाएँ।।
काँप रहे हैं बाबा थर - थर।
झरती ओस गगन से झर - झर।।
उनको भी तो अब गरमाएँ।
बढ़ती ठंड अलाव जलाएँ।।
'शुभम्' बिलोती दधि को अम्मा।
जला दिये की पतली शम्मा।।
उन्हें देह पर शॉल उढ़ाएँ।
बढ़ती ठंड अलाव जलाएँ।।
शुभमस्तु !
16.09.2024◆9.45 आ०मा०
★★★
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें