बुधवार, 18 सितंबर 2024

हिंदी हिंदुस्तान की [कुंडलिया]

 396/2024

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

   

                      -1-

हिंदी     हिंदुस्तान    के,    हिय   की  ग्रीवामाल।

महके मलय मृणाल-सी,मनसिज मंच   निहाल।।

मनसिज    मंच  निहाल ,मुखों   में ऐसी    भाई।

सुमधुर  सरल    स्वभाव,  ज्ञान  की गंगा   माई।।

'शुभम्'  सुशोभित  शान, भाल पर दमके  बिंदी।

रसना    की   रसधार, सरसती  हिय   में   हिंदी।।


                         -2-

हिंदी   निज   साहित्य  की, अद्भुत भाषा  एक।

जननी   संस्कृत  सौरभी, सदाचार शुभ   नेक।।

सदाचार   शुभ   नेक,  भाव   उर  के प्रकटाए।

विविध    छंद  भंडार, दसों  रस कवि  उमगाए।।

'शुभम्' शब्द गुण शक्ति,सलिल में शुभ अरविंदी।

व्यंग्य कथा  कमनीय, काव्य  की भाषा    हिंदी।।


                         -3-

हिंदी   सागर  शब्द  का, नहीं  किसी  से  बैर।

सबका  ही   स्वागत  करे, चाहे सबकी  खैर।।

चाहे     सबकी    खैर,आंग्ल  उर्दू या   अरबी।

खिलें   फ़ारसी    फूल, उठाती  जैसे   दरबी।।

'शुभम्'  विशद आकार, नहीं  है चिंदी-चिंदी।

सहज   लुटाती   प्यार, विश्व  में अपनी  हिंदी।।


                         -4-

जिनको   हिंदी  - प्रेम   है,  अपनाएँ  दिन - रात।

लिखें काव्य साहित्य वे,नित प्रति उदय  प्रभात।।

नित प्रति  उदय प्रभात, हीनता बोध न  उनमें।

सोवें   जागें   नित्य,   बसी  हिंदी  कन- कन में।।

'शुभम्'  मत्त कवि  लोग,लगाते धुन में मन को।

सहन नहीं कुछ और,सदा प्रिय हिंदी   जिनको।।


                         -5-

गाते - रोते      हिंद    में,     सोएँ - जागें    नित्य।

हिंदी  में    रस   बस   रहे, अन्य नहीं   औचित्य।।

अन्य   नहीं   औचित्य, नॉट बट गिटपिट  करना।

अपनी   माँ   को   छोड़,विदेशी पर जा   मरना।।

'शुभम्'  मूढ़   वे   लोग,  नहीं पल को   शरमाते।

देखें     सपने      नित्य,  गीत   हिंदी   में   गाते।।


शुभमस्तु !


12.09.2024●11.45आ०मा०

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