शनिवार, 21 सितंबर 2024

खबरों की 'खुशबू' बनाम खबरी [ व्यंग्य ]

 433/2024

 

 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 देश विदेश के नित्य के समाचार संदेश देने वाले हमारे अखबार वाले ये न समझें कि उनसे बड़ा कोई खबरी नहीं है।आप तो करोड़ों के छापाखाने स्थापित करके अरबों कमाने के फेर में समाचारों का प्रसारण छाप - छापकर हमारे पास पहुँचाते हो।आपका उद्देश्य तो सामाचार प्रसारण के साथ -साथ नाम और नामा कमाने का है ही।इसके विपरीत हमारे सभी गली-मोहल्लों में ऐसे - ऐसे समाजसेवी और समाज सेविकाएँ भी हैं, जो नित्य प्रति निःशुल्क खबरें प्रसारित कर नाम कमा रहे हैं।उनका काम ही है कि वे सुबह से शाम तक खबरों को सूंघें,चाटें, चुभलाएँ,चबाएँ और दर-दर घर- घर पहुचाएं। कितना बड़ा पुण्य का कार्य वे कर रहे हैं। और उधर एक आप भी हैं जो किसी की भैंस और किसी की कुतिया के खोने की खबर हमारे पास पहुँचाने का पुण्य अर्जित कर रहे हैं। आपके विस्तार के अनुसार आपकी खबर सीमा भी व्यापक है।आप तो आर्थिक, सामाजिक और सबसे ज्यादा राजनैतिक ख़बरें नमक मिर्च लगा- लगा कर जनता की जीभें चटपटी बनाने में लगे हुए हैं। 

  आपकी तुलना में उनकी सेवा सदा निस्वार्थ है। उन्हें तो यही आदत है,जुनून है ,जोश है या जज़्बा है ;कुछ भी कह लीजिए कि उनके पेट में इतनी जगह नहीं कि वे बात को उसमें सँभाल कर रख सकें अथवा वे उसे पचा सकें।इसलिए उसका मुख के माध्यम से खबर -विरेचन अनिवार्य हो जाता है। एक बात यह भी है कि वे बेचारे/बेचरियाँ स्व -उदर में संभालें तो आखिर कब तक संभालें? सँभालने की सीमा ससीम होने के कारण उनका विरेचन भी अनिवार्य हो जाता है।यह बात भी एकदम सत्य है कि अगले दिन की खबरें कहाँ रख पाएँगे ,इसलिए दूसरों को सुनाकर अपने तन और मन का बोझ हलका कर लेते हैं।यह उचित भी है।इस काम में कुछ सासें साँस रोक- रोक कर लगी हुई हैं और समाज ,गली ,मोहल्ले का पुण्य अर्जित कर रही हैं। वे अखबारों की तरह खबर -वमन कर निवृत्त नहीं हो लेतीं ,वरन बाकायदे रस ले लेकर उनकी समीक्षा भी करती हैं। कुछ ननदें भी इस निःशुल्क ख़बर प्रसारण में विशेषज्ञता प्राप्त हैं।जैसे किसी की कुतिया इंग्लैंड रिटर्न होकर आती है तो उसका महत्त्व भी बढ़ जाता है ,वैसे ही कुछ ननदों का महत्त्व भी पति -गृह रिटर्न के बाद सौ गुणा हो लेता है।यह तो वैसे ही है जैसे मास्टर डिग्री के बाद किसी ने सीधे डी.लिट्.ही कर डाली हो। 

  गरमा - गरम खबरों को पढ़ने के बजाय जो विशेषानंद खबरों को सुनने- सुनाने और रस भरी विस्तृत समीक्षा में वह भला अन्यत्र कहाँ है?इससे आलोचक की अपनी 'सद्भावना' भी प्रकट हो जाती है और उसके प्रति सकारात्मक या नकारात्मक रुख भी उदघाटित हो जाता है।समय का इससे उत्तम सदुपयोग भला और हो भी कैसे सकता है। इसीलिए तो कुछ समाजी 'शुभचिन्तिकाएँ' भोर होते ही दर-दर का रुख करती हुई और चाय के गर्म प्याले की भाप के बीच सुर्ख होती हुई दिखलाई पड़ ही जाती हैं।कुछ 'समाज -चिन्तिकाओं' को यह गुण जन्मजात उनकी घुट्टी में घोट - घोट कर पिलाया जाता है और वह पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परागत रूप से चलता रहता है।इस मामले में कुछ 'महा-पुरुष' भी कम नहीं हैं।किंतु उनका प्रतिशत इन 'महा-मानवियों' की तुलना में नगण्य है। उन्हें यह 'सद्गुण' 'प्राकृतिक समीक्षिका' के रूप में सहज रूप में प्राप्त जो है।बिना इस कार्य को अंजाम दिए हुए उनकी रोटी ही हजम नहीं होती। करें भी तो क्या करें। यह उनका स्वभाव ही बन गया है। 

  चिंतन की गहराई में उतरने पर पता चलता है कि हो न हो खबरों को छाप -छाप कर फैलाने ,छितराने और बिखराने का 'महत कार्य' किसी 'महानारी' की ही देन है। जो आज सारे संसार में व्याप्त है। किंतु उसका पारम्परिक और रूढ़ रूप आज भी अपने उसी मूल रूप और स्वरूप में जिंदा है। यह खबर की खबरों का एक उत्तम पहलू ही है। अन्यथा आज के डिजिटल युग में ऐसी बहुत सारी परंपराएं दम तोड़े बैठी हैं और रही - सही मरती चली जा रही हैं।धन्य है वह अज्ञात प्रथम 'महानारी' जिसने समाचार प्रसारण प्रणाली को जन्म दिया। इसके अति आधुनिकीकरण का परिणाम सामने है कि जितनी अच्छी न्यूज रीडर और एंकर नारियाँ हैं,उतनी सफलता पुरुषों ने प्राप्त नहीं की है। कभी - कभी उनकी वाक -चातुरी और वंदे मातरम स्पीड को देखकर हम पुरुषों को ईर्ष्या होने लगती है। कुदरत ने उनके गले और देह में ऐसा कौन -सा विशेष यंत्र फिट कर दिया है कि हम भी उनसे लोहा लेने के लिए विवश हैं।

 खबरों को सुनना और सुनाना मानव जाति का एक विशेष गुण है।उसकी इसी प्रवृत्ति ने अखबार की ईजाद की ।अब वह अपने मूल स्वरूप 'वाङ्गमय' और लिखित स्वरूप अखबार और डिजिटल स्वरूप में टीवी, वीडियो, ऑडियो आदि में विस्तार पा रही हैं।अपने सुख-दुःख,हर्ष -विषाद,हार-जीत, उत्थान -पतन,युद्ध ,शांति,धन, दौलत,प्रशंसा, स्तुति,पूजा,पाठ, अर्चना,भजन,विवाह,शादी,प्री मैरिज, अर्थ,धर्म, काम सबका सार्वजनिकीकरण करना चाहता है।कहीं कुछ भी गोपनीय नहीं ।सब कुछ खुली किताब। आओ और देख जाओ। 'जिज्ञासा' का विशेष गुण किसी गधे -घोड़े ,बैल -गाय, बकरी -सुअर, कुत्ते - बिल्ली ,तोता- मैना,मछली -ऊदबिलाव,शेर - वानर में हो या न हो, किन्तु मनुष्य मात्र में जन्मजात है।इसीलिए वह किसी के फटे में अपनी टाँग अड़ाना भी बखूबी जनता है।और अड़ी हुई टाँग की खबर को रस ले लेकर उड़ाना भी खूब जानता है। जमाने की 'खबरों की खुशबू' की बात ही निराली है। इसीलिए तो उसकी जन्मदात्री मेरी या आपकी घर वाली है।खबरें जल्दी से जल्दी फैलें ,इसकी उन्हें उतावली है। इनमें गरम मसाला भी है, और सादा सलादी भी हैं। कुछ बड़ी -बड़ी फौलादी भी हैं। रंगीन भी होती हैं कुछ खबरें, और अच्छे अच्छों के रंग भी उतार देती हैं खबरें! खबरों का संसार ही अनौखा है। ख़बर-चाटुओं ने दिन भर अख़बार को चाटा है। ऐसा भी है कि कुछ ऐसे भी जन हैं,जिन्हें जगत की गतियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है।उनके लिए तो बहुत पहले ही कह दिया गया है : 'सब ते भले वे मूढ़ जन ,जिन्हें न व्यापे जगत गति।' 

 शुभमस्तु !

 21.09.2024● 9.15आ०मा०

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