427/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अपनी मंजिल तक पहुँचाती।
सरके नहीं सड़क कहलातीं।।
दिन - रातों में चलते राही।
यात्रा करें सभी मनचाही।।
वहीं पड़ी वह कहीं न जाती।
सरके नहीं सड़क कहलाती।।
उबड़ - खाबड़ गर्त हजारों।
बाइक ट्रक बस दौड़ें कारों।।
नहीं किसी को दर्द बताती।
सरके नहीं सड़क कहलाती।।
'शुभम्' न खबर ले रहे नेता।
कहता है मैं ही मैं देता।।
चलते तो नानी सुधि आती।
सरके नहीं सड़क कहलाती।।
शुभमस्तु !
16.09.2024◆10.15 आ०मा०
★★★
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