शनिवार, 28 सितंबर 2024

राधा:2 [कुंडलिया]

 446/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

राधा    रसरंजिनि रमा, मनमोहन की     शक्ति।

भक्तों के मन  में  बसी, युग- युग  की अनुरक्ति।।

युग-युग की अनुरक्ति,धान्य धन सुख  की दानी।

संकटहारिणि   शीघ्र,  श्याम  की प्रेम   कहानी।।

'शुभम्'  जपें  जो  नाम,मिटें पल भर   में   बाधा।

रटो    राधिका   श्याम, कृपा  करती हैं     राधा।।


                         -2-

राधा   ने   ब्रज-गाँव   में,लिया  सुघर  अवतार।

रावल  में   माँ   कीर्ति  का, स्वप्न हुआ  साकार।।

स्वप्न     हुआ     साकार, पिता वृषभानु  तुम्हारे।

उदित  हुए     सौभाग्य,  गाय   बहु पालनहारे।।

'शुभम्'   कृष्ण हरि रूप,मिटाते जन की   बाधा।

बने  रमापति   श्याम,  संग   नित उनकी  राधा।।


                         -3-

राधा    मय   मन को करो, मिल जाएंगे   श्याम।

त्रेतायुग    में    राम   थे,  द्वापर  सँग  बलराम।।

द्वापर   सँग     बलराम, शेषशायी प्रभु     न्यारे।

सोलह   कला   प्रधान,  नंद यशुदा के     प्यारे।।

रानी   षोडश    सहस, श्रेष्ठ ऊपर बिन     बाधा।

पटरानी   भी   आठ, 'शुभम्' शोभित  हैं  राधा।।


                         -4-

राधा  धारा   प्रेम  की, ज्यों  जमुना की    धार।

राधा    रस में  जो   रमा,  उसका हो    उद्धार।।

उसका  हो   उद्धार,कृष्ण  -  रँग में  अनुरंजित।

ब्रज की प्रेम फुहार,बाग ज्यों कोकिल गुंजित।।

'शुभम्'  जीव आधार, श्याम का जिसने   साधा।

करतीं   नेह   अपार,   प्रेम   बरसातीं     राधा।।


                         -5-

राधामय    संसार    है,  धन   की  देवी   एक।

नेह   राशि  भंडार  वे,कृष्ण प्रिया शुभ    नेक।।

कृष्ण  प्रिया   शुभ नेक, युगों की नव अवतारी।

नेहशील  शुचि कांति, विघ्न बहु नाश सँहारी।।

'शुभम्' जप  रहे नाम,श्याम नित जाती  बाधा।

हे जन जप  लो  श्याम,  निरंतर राधा - राधा।।


शुभमस्तु !


27.09.2024●8.00आ०मा०

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