404/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जननी धरती गगन पिता जी।
युगल मूर्ति जीवित ममता की।।
मात -पिता के बिना न हम हैं।
कोई नहीं किसी से कम हैं।।
जग में कहीं नहीं समता भी।
युगल मूर्ति जीवित ममता की।।
मात - पिता के अहसानों का।
स्वार्थ बिना उनके दानों का।।
बदला संतति नहीं चुकाती।
युगल मूर्ति जीवित ममता की।।
'शुभम्' नित्य वह पद - रज पाएँ।
नत ललाट कर शीश झुकाएँ।।
कभी न संतति उनसे छाकी।
युगल मूर्ति जीवित ममता की।।
शुभमस्तु !
15.09.2024●10.45आ०मा०
★★★
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