441/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मिलता हर्ष
कर्म करने से
किंतु लक्ष्य हो ज्ञान।
बुनकर बया
बनाती अपना
सुघर घोंसला नेक।
बया - बुद्धि- सी
सोच रखें यदि
जागे सकल विवेक।।
आत्मा जगे
कर्म वह करना
करना अनुसंधान।
बंधन है
ब्रह्मांड हमारा
करना नहीं नकार।
करें कर्म
कारण की तह में
मिलता सुफल सकार।।
बुनता खाट
ध्यान से बुनकर
बाँधें वैसे बान।
महत लक्ष्य की
ओर प्रवृत्त हो
करना सदा प्रयास।
यही कहा है
संत शिरोमणि
है विवेक का वास।।
मानस -शक्ति
'शुभम्' कर बाहर
छेड़ें कर्म सु-तान।
शुभमस्तु !
26.09.2024●11.15आ०मा०
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