407/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मेहो - मेहो करते मोर।
गाँव गली में होता भोर।।
छिपे ओट में करते नाच।
छत पर जब तब भरे कुलाँच।।
अमराई में करते शोर।
मेहो - मेहो करते मोर।।
नीले हरे बैंजनी पंख।
चमकीले भी बड़े असंख।।
कम्पन करती सुंदर कोर।
मेहो - मेहो करते मोर।।
'शुभम्' शारदा माँ का वाहन।
उधर सर्प का जानी दुश्मन।।
नाचे तो मत जा उस ओर।
मेहो - मेहो करते मोर।।
शुभमस्तु !
15. 09.2024◆1.15प०मा०
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