बुधवार, 25 सितंबर 2024

कुशल काव्य का छंद [ दोहा ]

 438/2024

       

[छंद,छप्पर,कुशल-क्षेम,मौसम,प्रस्ताव]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                सब में एक

चलती  हो    गजगामिनी, लगती कवि   का   छंद।

लय   गति  रसमय   रंजिता, झरता मधु   मकरंद।।

छंद बद्ध    कविता  करें,   कुशल  काव्य   मर्मज्ञ।

मात्रिक   वर्णिक  ज्ञान  से,कवि बन  जाते   विज्ञ।।


छप्पर - आच्छादन    करें,पहले के    सब    लोग।

रहते    उठते      बैठते ,    नहीं  व्यापते       रोग।।

आँधी    में   छप्पर  उड़ा, नर -नारी     निरुपाय।

कैसे  फिर   छाजन  पड़े,अधिक नहीं  धन-आय।।


कुशल -  क्षेम सबकी  रहे,'शुभम्'  यही  सद्भाव।

दुखी न   मानव  मात्र  हो,  रखें  न हृदय  दुराव।।

कुशल -  क्षेम   लेते   रहें, जिनसे  हों     सम्बंध।

नेह  बढ़े  नित  मान  भी,   उड़ती सुमन - सुगंध।।


मौसम   में  बदलाव  का, मिलता जब   संकेत।

बदलें      दिनचर्या    सभी, मानव अपने   हेत।।

मौसम   की   अठखेलियाँ, करते सभी   पसंद।

नर - नारी   खग   ढोर भी,लता विटप  भू कंद।।


नेह   भरा  प्रस्ताव  है, यदि  कर लें   स्वीकार।

हे   कामिनि  गजगामिनी, जुड़ें हृदय   के तार।।

मानें  यदि  प्रस्ताव  को, हो परिणय सम्बन्ध।

मिलें  एक  से  एक  तो, ग्यारह  की हो   गंध।।

                  एक में सब

कुशल-क्षेम छप्पर छई,कुशल काव्य का छंद।

मधु मौसम   प्रस्ताव है,  पाटल का   मकरंद।।


शुभमस्तु !

24.09.2024● 11.45 प०मा०

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