सोमवार, 2 सितंबर 2024

ताल ठोंकते चोर [ गीत ]

 378/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सरकारों को

कोस रहे हैं

ताल ठोंकते चोर।


नहीं समय का

पालन करते

रहते खेत दुकान,

कक्षा में जा

नहीं पढ़ाते

फिर भी गुरू महान।


अन्य आय के 

साधन का अब

आया है शुभ भोर।


श्रम से पेट

नहीं भर पाता

निष्ठा हनन जरूरी।

माथे तिलक

गले में कंठी

और बगल में छूरी।।


नई सभ्यता 

खड़े -खड़े की

बँधा नाद पर ढोर।


लीटर भर

पानी दुहनी में

पहले से ही डाल।

दूध बेचते

ग्राहक जन को

करता कौन सवाल।।


मैदे से खोया

निर्मित कर

लेता हिया हिलोर।


लीद गधे की

धनिए में मिल

खुशबू देती और।

चर्बी घी में

गाढ़ी -गाढ़ी

किया कभी है गौर??


पाम तेल

तेलों में जा मिल

बना  रहा  बरजोर।


भरें हाजिरी

अगर डिजीटल

कर देते हड़ताल।

चोर -चोर

मौसेरे भाई

सबका ही ये हाल।।


'शुभम्' दोष

सरकारों  को दें

करें देश में  शोर।


शुभमस्तु !


02.09.2024●9.00आ०मा०

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