बुधवार, 18 सितंबर 2024

गुलाब [ बालगीत ]

 416/2024

                   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मैं       पाटल    गुलाब     कहलाता।

काँटों     में     सुगंध     बिखराता।।


पीला       नीला     लाल    गुलाबी।

बहुतेरे         रँग     हैं       नायाबी।।

उपवन      में     क्यारी    में  छाता।

मैं   पाटल      गुलाब     कहलाता।।


देवों    के   सिर    पर    मैं  चढ़ता।

अपनी  कीर्ति    कहानी    गढ़ता।।

जो      छूता     उसको  महकाता।

मैं    पाटल    गुलाब   कहलाता।।


'शुभम्'  मनुज   ग्रीवा  में   सजता।

निज सुगंध  मैं  कभी   न  तजता।।

कभी न    यश   पाकर    इतराता।

मैं  पाटल     गुलाब     कहलाता।।


शुभमस्तु !

16.09.2024◆1.15 आ०मा०

                     ★★★

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