418/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सरिताओं में जीवन बहता।
भूखा -प्यासा एक न रहता।।
हरित धरा की जीवन रेखा।
गङ्गा यमुना हमने देखा।।
नर - नारी तरु कष्ट न सहता।
सरिताओं में जीवन बहता।।
गेहूँ धान मटर की फसलें।
पौधे पेड़ मनुज की नस्लें।।
पशु खग सबका हित जग कहता।
सरिताओं में जीवन बहता।।
'शुभम्' न डालें मैला कचरा।
बढ़ता है जीवन को खतरा।।
जी जाता है जो जन दहता।
सरिताओं में जीवन बहता।।
शुभमस्तु !
16.09.2024 ◆2.30 आ०मा०
★★★
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