432/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
'उधेड़' के संग 'बुन' का
विरोधाभास
बना रहे,
पर साथ - साथ हैं।
अँधेरे के बिना
उजाला भला
जी पाएगा कब तक?
अस्तित्त्व ही क्या है!
अधर्म के बिना धर्म!
पाप के बिना पुण्य!
निर्धन के बिना धनिक!
महत्त्व ही क्या है?
मरण के साथ
जीवन का
अटूट है रिश्ता ।
शैतान का
जोड़ीदार है फरिश्ता,
उधड़ेगा नहीं तो
बुना क्या जाएगा?
शुभमस्तु !
19.09.2024●11.45आ०मा०
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