413/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सूरज दादा मौन विचरते।
पल की एक न देरी करते।।
संग उषा के प्रति दिन आते।
संध्या के सँग विदा कराते।।
रजनी के सँग निशि भर रहते।
सूरज दादा मौन विचरते।।
कभी ताप से धरा जलाते।
शीत काल में ताप सिराते।।
भले ठंड से खग पशु मरते।
सूरज दादा मौन विचरते।।
'शुभम्' पकाते फसलें तुम ही।
फूल खिलाते जग के सब ही।।
भू में सोना रजत सँवरते।
सूरज दादा मौन विचरते।।
शुभमस्तु !
15.09.2024◆7.15प०मा०
★★★
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