410/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
इंद्रधनुष मोहक सतरंगा।
लगता नील गगन की गंगा।।
वर्षा ऋतु का दृश्य मनोहर।
चमक रहा रंगों में शुभकर।।
शांत मौन अध वक्रिम चंगा ।
इंद्रधनुष मोहक सतरंगा।।
मेरी आँखों को अति भाता।
बिना शब्द मानो बतियाता।।
लेटा हो ज्यों एक कुरंगा।
इंद्रधनुष मोहक सतरंगा।।
'शुभम्' सूक्ष्म कण जल के शोभन।
बाँट रहे ज्यों अंबर को धन।।
लेटा वसन वसन बिना जो नंगा।
इंद्रधनुष मोहक सतरंगा।।
शुभमस्तु !
15.09.2024◆5.45प०मा०
★★★
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