हमारे यहाँ कुछ लोगों को विरोध के लिए विरोध करने में बड़ा मजा आता है। एक सज्जन ने तर्क दिया है कि हमारे देश में मदर्स डे मनाने की क्या जरूरत है? यहाँ तो हर दिनमां का है , क्योंकि यहाँ बच्चे माता पिता के साथ रहते हैं ।विदेशों में वे अन्यत्र पलते हैं , कभी कभार ही माँ बाप से मिलते हैं , इसलिए वे मातृ दिवस मानते हैं। यहाँ कोई जरूरत नहीं। आदि आदि।
हमारे देश में गुरु पूर्णिमा , शिक्षक दिवस , आदि अनेक ऐसे अवसरहैं , जब हम अपने गुरुजन का सम्मान करते हैं , तो क्या गुरु को सम्मान देने का एक ही दिन है। शेष दिनों में उन्हें गाली दी जाए, अपमान किया जाए, नकल न कराए तो पीटा जाए! गुरुतत्व भी तो हमारे जीवन के प्रतिक्षण और प्रतिदिन का अनिवार्य तत्व है। इसी प्रकार और भी बहुत से दिन हो सकते हैं।
मां बाप को वृद्धआश्रम में बिठाने वाले भी तो इसी देश में रहते हैं। वे क्या मनाएं! मेरा कहने का अर्थ मात्र इतना है कि लोग अपनी "अतिबुद्धिमत्ता" का प्रदर्शन करने के लिए लोगों की आस्था औऱ श्रद्धा पर प्रहार करते हैं। हर व्यक्ति अपने पूज्य माता पिता के सम्मान के लिए स्वतंत्र है। यदि कोई अच्छी बात हमने पश्चिम से अपना ही ली तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। जो भारतीय संस्कृति का ककहरा भी नहीं जानते , वे विरोध के नाम पर विरोध करके अपने को अति ज्ञानी सिद्ध करने में लग जाते हैं। अरे भाई! ये संस्कृति समन्वय की है, मेल की है,जोड़ने की है ,तोड़ने की नहीं। इसलिए यहाँ मातृ दिवस मनाना कोई अनुचित कार्य नहीं है।
💐 शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"
हमारे देश में गुरु पूर्णिमा , शिक्षक दिवस , आदि अनेक ऐसे अवसरहैं , जब हम अपने गुरुजन का सम्मान करते हैं , तो क्या गुरु को सम्मान देने का एक ही दिन है। शेष दिनों में उन्हें गाली दी जाए, अपमान किया जाए, नकल न कराए तो पीटा जाए! गुरुतत्व भी तो हमारे जीवन के प्रतिक्षण और प्रतिदिन का अनिवार्य तत्व है। इसी प्रकार और भी बहुत से दिन हो सकते हैं।
मां बाप को वृद्धआश्रम में बिठाने वाले भी तो इसी देश में रहते हैं। वे क्या मनाएं! मेरा कहने का अर्थ मात्र इतना है कि लोग अपनी "अतिबुद्धिमत्ता" का प्रदर्शन करने के लिए लोगों की आस्था औऱ श्रद्धा पर प्रहार करते हैं। हर व्यक्ति अपने पूज्य माता पिता के सम्मान के लिए स्वतंत्र है। यदि कोई अच्छी बात हमने पश्चिम से अपना ही ली तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। जो भारतीय संस्कृति का ककहरा भी नहीं जानते , वे विरोध के नाम पर विरोध करके अपने को अति ज्ञानी सिद्ध करने में लग जाते हैं। अरे भाई! ये संस्कृति समन्वय की है, मेल की है,जोड़ने की है ,तोड़ने की नहीं। इसलिए यहाँ मातृ दिवस मनाना कोई अनुचित कार्य नहीं है।
💐 शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"
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