शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

आदमियों का जंगल

आदमियों के जंगल मेंआँधी चली है,
नैतिकता दामन छिपाने लगी है।

ये क्या हो गया है इस आदमी को,
सुअर -सुुअरिया शरमाने लगी है।

वफ़ादार है श्वान इस आदमी से,
कायनात ये बातें बताने लगी है।

मुखौटे लगे हैं   चेहरे   पे इसके,
घोंसले में चिरैया जताने लगी है।

बात करता है इंसां बचाने की बेटी
बेटियों पे कहर वो ढाने  लगी   है।

शर्म से चेहरे  झुकते   नहीं  अब,
बदनीयत इस कदर भरमाने लगी है।

क्यों दिया देह इंसा का इस आदमी को
पशुओं की जमात जताने लगी है।

विश्वास के योग्य नहीं अब ये इंसा
"शुभम"आत्मा कुलबुलाने लगी है।

 शुभमस्तु
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम

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