रविवार, 15 जुलाई 2018

निशाने पर निशाने

मत निशाने पर निशाने लगाते रहो
पंक अपना न उधर को छिंटातेरहो

पंक कम हो गया तो कमल क्यों खिले
अपना दामन भी झकते  झकाते रहो।

ये कीचड़ उछालूं सियासत शुभ तो नहीं
गरीबों को     गले से   लगाते रहो।

इन जुमलों भाषणों से अघा हम गए
तानाशाही  तो यों मत दिखाते रहो।

चोर समझा है सबको 'हरिश्चन्द्र' ने
मत इतिहास अपना  लजाते रहो।

विश्वास  लेके यों मत  दगा तुम करो
आदमी को  ज़िंदा मत जलाते रहो।

अक्ल पूरी की पूरी क्या तुम्हीं को मिली,
मूर्ख जनता को यों मत बनाते रहो।

इतिहास साक्षी है कितने आए गए
मत अमरता यों अपनी जताते रहो।

वक़्त बतलाएगा कितना चिल्लाओ शुभम
कुछ नेकी भी दरिया में  गिराते रहो।

💐शुभमस्तु!

रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...