आज के इस युग में मनुष्य का नैतिक पतन पराकाष्ठा पर है। चरित्रहीन मानव देह धारी पशु ये क्यों भूल जाता है कि जिस किसी भी स्त्री , युवती या बालिका को देखता है , उसकी दृष्टि में केवल वह वासना की वस्तु ही क्यों खाई देती है!क्यों भूल जाता है कि उसके घर में भी माता, बहन , भाभी , चाची , ताई आदि अनेक निकट के रिश्ते की नारियां होंगी। फिर ये क्यों न समझा जाए कि ऐसे लोग अपने घर , परिवार भी वही करत्ते होंगे , जो वे सड़क , गलियों , सार्वजनिक स्थानों , बस , ट्रेन , आदि वाहनों में करते देखे जाते हैं।
वासना वस्त्रों में नहीं होती , मानव रूपी पशु की आंखों में होती है। मानव के इस चारित्रिक पतन के अनेक उदाहरणों से रोज के समाचार पत्र पटे पड़े रहते हैं। आहार विहार की विकृति, पारिवारिक पृष्ठभूमि की निम्नता, बेरोजगारी, शॉर्टकट तरीके से डिग्रियाँ हासिल कर लेना , शिक्षा के अनुरूप योग्यता का अभाव, अभिभावकों और उनके शिक्षकों का नैतिक रूप से गिरा हुआ होना आदि ऐसे अनेक कारण हैं , जिनके द्वारा पतन हो रहा है। शर्म की बात है कि विधायक , अधिकारी , कर्मचारी , जज , मिनिस्टर चारित्रिक पतन के शिकार हैं , जिनके लिए कहीं दूर जाने की जरूरत भी नहीं है, नित्य के अखबार साक्षी हैं।चारित्रिक पतन केवल दैहिक वासना परक ही नहीं होता , रिश्वत लेकर काम करना , रिश्वत देकर छूट जाना , ये सभी नैतिक पतन के विविध रूप हैं ।
अब प्रश्न ये उत्पन्न होता है, कि इसका निदान कैसे हो? हमारी शिक्षा व्यवस्था भी बहुत कुछ अर्थों में इस के लिए दोषी है। चरित्रवान शिक्षक इसकी पहली आवश्यकता है। आचरण और चरित्र के मामले में उपदेश से अधिक शिक्षक का व्यवहार और आचरण भी जिम्मेदार है। जब शिक्षक ही चरित्र वान नहीं तो विद्यर्थियों से कैसे अपेक्षा की जा सकती है। अब तो यह कहावत सही मायने में चरितार्थ हो रही है -'जैसे गुरु वैसे चेला, होय नरक में ठेलम ठेला'।
समाज में चारित्रिक प्रदूषण इतना अधिक बढ़ गया है कि आँखों के सामने घटना होने के बावजूद कोई कुछ बोलता नहीं। कोई साक्षी नहीं मिलता। राजनीतिक प्रयासों से कातिल अपराधी साफ बच निकल जाते हैं और निरपराध और अबोध फँस जाते हैं। मेरी दृष्टि में गंदगी का दूसरा नाम राजनीति है। जो आज धर्म , समाज , शिक्षा, शिक्षक , शिक्षार्थी , मजदूर , कर्मचारी , अधिकारी, न्याय व्यवस्था आदि सबको प्रदूषित कर रही है। सारे कुओं में में नैतिक पतन की भाँग जैसी घोल दी गई है।
पुलिस और प्रशासन पंगु होते जा रहे हैं , जिसका दायत्व गंदी , बदबूदार और विषैली राजनीति का ही है।राजनीति के राहु ने सबको ग्रस लिया है। राजनेताओं की योग्यता विहीन पदासीनता देश और प्रदेशों को गड्ढे में ले जा रही है । सिर्फ कुर्सी हथियाना नेताओं का लक्ष्य बन गया है , चाहे जैसे भी मिले -येन केन प्रकारेण। इसीलिये अब किसी भी दल में शुद्धता नहीं है। चाहे कोई कितने भी दावे करे, सब दिखावा और कोरी बकवास। कीचड़ उछाल राजनीति के युग में आज एक भी दल नहीं जो देश का उद्धार कर सके। सभी बोतलों में एक ही शराब है, लेबिल बदलने से क्या होता है! कोई साँपनाथ कोई नागनाथ।
शुभमस्तु।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
वासना वस्त्रों में नहीं होती , मानव रूपी पशु की आंखों में होती है। मानव के इस चारित्रिक पतन के अनेक उदाहरणों से रोज के समाचार पत्र पटे पड़े रहते हैं। आहार विहार की विकृति, पारिवारिक पृष्ठभूमि की निम्नता, बेरोजगारी, शॉर्टकट तरीके से डिग्रियाँ हासिल कर लेना , शिक्षा के अनुरूप योग्यता का अभाव, अभिभावकों और उनके शिक्षकों का नैतिक रूप से गिरा हुआ होना आदि ऐसे अनेक कारण हैं , जिनके द्वारा पतन हो रहा है। शर्म की बात है कि विधायक , अधिकारी , कर्मचारी , जज , मिनिस्टर चारित्रिक पतन के शिकार हैं , जिनके लिए कहीं दूर जाने की जरूरत भी नहीं है, नित्य के अखबार साक्षी हैं।चारित्रिक पतन केवल दैहिक वासना परक ही नहीं होता , रिश्वत लेकर काम करना , रिश्वत देकर छूट जाना , ये सभी नैतिक पतन के विविध रूप हैं ।
अब प्रश्न ये उत्पन्न होता है, कि इसका निदान कैसे हो? हमारी शिक्षा व्यवस्था भी बहुत कुछ अर्थों में इस के लिए दोषी है। चरित्रवान शिक्षक इसकी पहली आवश्यकता है। आचरण और चरित्र के मामले में उपदेश से अधिक शिक्षक का व्यवहार और आचरण भी जिम्मेदार है। जब शिक्षक ही चरित्र वान नहीं तो विद्यर्थियों से कैसे अपेक्षा की जा सकती है। अब तो यह कहावत सही मायने में चरितार्थ हो रही है -'जैसे गुरु वैसे चेला, होय नरक में ठेलम ठेला'।
समाज में चारित्रिक प्रदूषण इतना अधिक बढ़ गया है कि आँखों के सामने घटना होने के बावजूद कोई कुछ बोलता नहीं। कोई साक्षी नहीं मिलता। राजनीतिक प्रयासों से कातिल अपराधी साफ बच निकल जाते हैं और निरपराध और अबोध फँस जाते हैं। मेरी दृष्टि में गंदगी का दूसरा नाम राजनीति है। जो आज धर्म , समाज , शिक्षा, शिक्षक , शिक्षार्थी , मजदूर , कर्मचारी , अधिकारी, न्याय व्यवस्था आदि सबको प्रदूषित कर रही है। सारे कुओं में में नैतिक पतन की भाँग जैसी घोल दी गई है।
पुलिस और प्रशासन पंगु होते जा रहे हैं , जिसका दायत्व गंदी , बदबूदार और विषैली राजनीति का ही है।राजनीति के राहु ने सबको ग्रस लिया है। राजनेताओं की योग्यता विहीन पदासीनता देश और प्रदेशों को गड्ढे में ले जा रही है । सिर्फ कुर्सी हथियाना नेताओं का लक्ष्य बन गया है , चाहे जैसे भी मिले -येन केन प्रकारेण। इसीलिये अब किसी भी दल में शुद्धता नहीं है। चाहे कोई कितने भी दावे करे, सब दिखावा और कोरी बकवास। कीचड़ उछाल राजनीति के युग में आज एक भी दल नहीं जो देश का उद्धार कर सके। सभी बोतलों में एक ही शराब है, लेबिल बदलने से क्या होता है! कोई साँपनाथ कोई नागनाथ।
शुभमस्तु।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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