पहले चोरी होती थीं कारें
अब चोरी होतीं हैं सरकारें
सोते ही मत रह जाना तुम
निगरानी पूरी रखना तुम ।
मत रहना भरोसे वोटर के
ई वी एम या बैलट के
ये कलयुग है कलि चालों का
मानव की क्रूर कुचालों का ।
परिणाम - भरोसे मत सोना
कुर्सी खोए फिर मत रोना
यहाँ कोई दूध से धुला नहीं
कोई सत्य -तुला पर तुला नहीं।
जिसकी लाठी वही भैंस रखे
कमजोर की लाठी नहीं दिखे
चित भी मेरी पट भी मेरी
हट पीछे कुर्सी है मेरी।
लोकतंत्र बस कहने को
इस देश में केवल रहने को
बाकी सब क्या है क्या कहें
मनमानी को जनतंत्र कहें।
ये लोकतंत्र या खेल बना
झूठा डकैत ही अधिक तना
पूछे न प्रबुद्धों को कोई
मध्यम जनता चुपचुप रोई।
भेड़तंत्र का चमत्कार
जो जीता उसकी हुई हार
कानून की शरण "शुभम" सत्यं
लोकतंत्र की नित हत्यम।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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