प्रायः अतीत शब्द का विलोम रूप वर्तमान लिखा - सुना जाता है। लेकिन यदि इस शब्द- पर सुविचारित रूप से दृष्टिपात किया जाय तो इसका तात्पर्य और भी रोचक हो जाता है। अतीत शब्द अ+तीत के संयोग से बना है। यहाँ अ का अर्थ नहीं और तीत का अर्थ नमी /आर्द्रता है। अर्थात जहाँ नमी न हो, सूखापन हो : वह अतीत है। इस आधार पर अतीत का विलोम हुआ सतीत्। स+तीत अर्थात तीत, नमी या आर्द्रता से युक्त, जिसे 'वर्तमान' कहा जाता है। जिसकी तीत चली गई , वही अतीत हो गया। यद्यपि अधिकांशतः जीवन के अतीत या भूत काल की प्रशंसा करते हुए देखे सुने जाते हैं कि पुराने दिन कितने अच्छे थे। थोड़े में सब काम हो जाते थे। संतोष था, सुख था। और थी परम शान्ति, और इसी शांति की खोज करते करते आदमी आज कहाँ से कहाँ जा पहुंचा ! शांति की खोज ज्यों ज्यों बढ़ती गई , हम अशांत ही होते चले गए। भौतिकता वाद बढ़ता गया । ग्रामोफोन , रेडियो और ट्रांसिस्टर के युग के बाद कम्प्यूटर , मोबाइल , टी वी से भी आगे बढ़कर नई नई खोजों ने आदमी को आदमी से मशीन बना दिया । शांति समाप्त होती चली गई। मानवीय संबंध स्वार्थपरता और पर पीड़न में में बदलते गए।
आदमी कलों का गुलाम हो गया। इसी को वह तीत मानने लगा , जबकि वास्तविक तीत तो भूत काल (भूत अर्थात जो हुआ या हो चुका ,वही भूत है।जो नहीं हुआ, वह अभूत है) है। लेकिन चूँकि वह अब नहीं है , पुनः उसका प्रत्यावर्तन सम्भव नहीं है , इसीलिए वह तीत से रहित होने के कारण अतीत कहा गया है। वर्तमान चाहे जितना सूखा हो, तीत रहित हो, लेकिन वह हमारी आँखों के सामने है, प्रयास करके उसमें तब्दीली या सुधार का जतन किया जा सकता है , इसलिए वही सतीत है। इसके विपरीत अतीत या व्यतीत काल में परिवर्तन या सुधार का कोई भी प्रयास कर पाना असम्भव है, इसीलिए वह अतीत है।
हाँ, लिखते - लिखते एक शब्द और याद आया व्यतीत। व्य (व्यय)+तीत अर्थात जिसकी तीत व्यय हो चुकी हो, खर्ची जा चुकी हो। माने वही जो अतीत के हैं। जैसे गई हुई तीत नहीं लौटती वैसे ही गया हुआ समय भी नहीं आता। कितने सार्थक औऱ सटीक हैं हमारे ये अतीत ,सतीत और व्यतीत । विचार करें तो ये शब्द हमें बहुत कुछ शिक्षा प्रदान करते हैं। अतीत की धरती पर ही सतीत की नई शिला का न्यास रखा जाता है। औऱ ये सतीत ही अगले क्षण अतीत बन जाता है। इसलिए सतीत ही अतीत है , वही भावी है, आगे होने वाला है।सतीत संभालों तो अतीत और भावी सभी उज्ज्वल।
💐 शुभमस्तु !
✍🏼लेखक©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
आदमी कलों का गुलाम हो गया। इसी को वह तीत मानने लगा , जबकि वास्तविक तीत तो भूत काल (भूत अर्थात जो हुआ या हो चुका ,वही भूत है।जो नहीं हुआ, वह अभूत है) है। लेकिन चूँकि वह अब नहीं है , पुनः उसका प्रत्यावर्तन सम्भव नहीं है , इसीलिए वह तीत से रहित होने के कारण अतीत कहा गया है। वर्तमान चाहे जितना सूखा हो, तीत रहित हो, लेकिन वह हमारी आँखों के सामने है, प्रयास करके उसमें तब्दीली या सुधार का जतन किया जा सकता है , इसलिए वही सतीत है। इसके विपरीत अतीत या व्यतीत काल में परिवर्तन या सुधार का कोई भी प्रयास कर पाना असम्भव है, इसीलिए वह अतीत है।
हाँ, लिखते - लिखते एक शब्द और याद आया व्यतीत। व्य (व्यय)+तीत अर्थात जिसकी तीत व्यय हो चुकी हो, खर्ची जा चुकी हो। माने वही जो अतीत के हैं। जैसे गई हुई तीत नहीं लौटती वैसे ही गया हुआ समय भी नहीं आता। कितने सार्थक औऱ सटीक हैं हमारे ये अतीत ,सतीत और व्यतीत । विचार करें तो ये शब्द हमें बहुत कुछ शिक्षा प्रदान करते हैं। अतीत की धरती पर ही सतीत की नई शिला का न्यास रखा जाता है। औऱ ये सतीत ही अगले क्षण अतीत बन जाता है। इसलिए सतीत ही अतीत है , वही भावी है, आगे होने वाला है।सतीत संभालों तो अतीत और भावी सभी उज्ज्वल।
💐 शुभमस्तु !
✍🏼लेखक©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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