अति का भला न गर्जना,
ना बिजली की चौंध।
आलू क्यों अति का भला,
उठी न मन में कौंध!!
वर्जित अति सर्वत्र ही,
नौ - नौ माह तपन्त।
आ लू! आ लू!! में गया ,
पपीहा - कृषक रटंत।।
जैसी जिसकी भावना,
वैसा ही फल होय।
आ लू ! आ लू!! रट लगी ,
फिर क्यों वर्षा होय।।
आलू की मृगमरीचिका,
भ्रमित किए हैं लोग।
कृषक जनों को लग गया,
ज्यों कैंसर का रोग ।।
खाकपति से लाखपति,
लखपति चाह करोड़।
कुछ ही खेलें लाख में,
खाकपति का शोर।।
मालिक से नौकर बना,
आलू कृषक प्रवीन।
लेबर में धन चुक गया,
रिक्त हस्त है सीन।।
जोत बुवाई यूरिया ,
डाई औऱ पोटाश।
छिड़क दवा कैंसर हुआ,
बनियां चढ़ी मोटाश।।
पानी खुदाई सुतलियाँ,
सूजे बोरे हज़ार।
ट्रैक्टर लादे चल दिया,
स्टोर हाट बाज़ार।।
बम्बई हैदराबाद की,
ट्रक भर लोडिंग होय।
अनलोडिंग कर माल की,
ड्राफ़्ट प्रतीक्षा होय।।
मोल करे बनिया दला',
कृषक खड़ा मज़बूर।
माल कृषक का, मूल्य का -
भाव करे जो दूर।।
पत्थर पड़े न अक्ल पर,
आलू पड़े हैं गोल।
सोवत -जागत रट वही,
जय आलू की बोल।।
अनावृष्टि के मूल में,
आलू और किसान।
ए सी में बनिया रहे ,
कृषक हुआ कृश जान।।
चर्बी चढ़ी न कृषक पर,
छिलका जैसे पेट।
सेठानी के वास्ते,
छोटे पड़ गए गेट।।
रात -रात भर जागकर ,
पानी खाद लगाय।
दिन हरियाली देखकर,
हर्ष - हर्ष हरषाय।।
कीटनाशकों की कृपा ,
कैंसर का 'वरदान'!
कृषक और मजदूर की
ले बच्चों की जान।।
फसल पके हाथ न लगे,
इच्छित धन नहीं हाथ।
पछताए क्या होत अब,
आलू दिया न साथ।।
आ लू! आ लू!! जप रहा,
ले लू का वरदान।
सावन भादों लू चलें,
सिरसागंज महान।।
छिड़क रसायन जहर के,
मत बो कैंसर बीज।
शक्ति उर्वरा क्षीण हो,
मृदा न रहे सजीव।
सूखा और अकाल के ,
जनक कृषक भगवान।
जिनकी मति आलू बसें,
रति गति आलू जान।।
*शुभम* वचनअब चेत जा,
मर्यादा तो सीख।
मत धरती बरवाद कर ,
मांगें मिले न भीख।।
शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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