शनिवार, 28 जुलाई 2018

राजकीय सम्मान

   देश का राष्ट्रध्वज देश की  मान -मर्यादा ,आन  -मान और शान का प्रतीक है। उसके साथ मनमाना व्यवहार करके उसका अपमान करना उचित नहीं है। इसका सुनिश्चित विधान होना चाहिए कि कि किस व्यक्ति का अंतिम समय में राजकीय संम्मान किया जाए। जो सैनिक अपने घर -परिवार को सैकड़ों हज़ारों किलोमीटर की दूरी पर छोड़कर देश सेवा में अपने जीवन का बलिदान करने के लिए रात दिन तैनात रहते हैं , उनमें और अन्य
क्षेत्रों में कार्यरत नागरिकों , कलाकारों , नेताओं, बुद्धिजीवियों में कुछ तो अंतर होगा। प्रत्येक नेता या कलाकार या खिलाड़ी को भी ये सम्मान देना उचित नहीं है। सम्बंधित के द्वारा देश के लिए कीये गए त्याग और बलिदान के फलस्वरूप ही उन्हें तिरंगे से आवृत कर सम्मानित किया जा सकता है।  सियासी चालों और चापलूसियों के आधार पर भी पद्मश्री और पदम् विभूषण बाँट दिए जाते हैं । माना कि देश सेवा अनेक प्रकार से की जा सकती है। एकं अन्नदाता सारे देश की अन्न ,फल ,फूल, सब्जी, दुग्ध आदि का उत्पादन कर अपना सारा जीवन होम देता है। जब हम जय जवान , जय किसान का नारा लगाते हैं तो उस किसान की सेवा को क्यों  उपेक्षित कर दिया जाता है, क्या उसकी देश सेवा किसी सैनिक द्वारा की गई सेवा से कम महत्वपूर्ण है? किसी किसी कृषक को सामान्य कफ़न भी मयस्सर नहीं होता और महलों में रहने वाले अरब पतियों को तिरंगे के कफ़न में लपेटा जाए , ये कहाँ तक उचित है।
   इसलिए  देश में किस व्यक्ति के अंतिम संस्कार में  तिरंगे  का उपयोग क्या जाए , इसका मानक पूर्व निर्धारित होना चाहिए। इसे इतना  सस्ता और घटिया मानसिकता के दायरे से बाहर निकाल कर तिरंगे को तिरंगा ही रहने दें , उसे मामूली कफ़न के दर्जे से बाहर किया जाए।
   आज के युग में इस विषय पर चिंतन ,मनन और मंथन अपरिहार्य हो गया है। केवल सफेद कुर्ता पायजामा सिलवाकर पहन लेने से हरेक नेता देश भक्त और बलिदानी नहीं हो जाता , इसलिए सभी नेताओं के अंतिम संस्कार में उनके शव को तिरंगे में लपेटना तिरंगे का बहुत बड़ा अपमान है। देश की तीनों सेनाओं के शहीदों के लिए उचित माना जा सकता है। मेरी अपनी दृष्टि में उनके संम्मान के लिए भी और अच्छा विकल्प खोजे जाने की आवश्यकता है।सस्ती लोकप्रियता के लिए तिरंगे की अस्मिता पर आघात नहीं किया जाना चाहिए।
   
इति शुभम।
✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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