डिग्रियाँ खरीदने -बेचने का बाजार सजा है,
भरी हैं जिनकी तिजोरियाँ मज़ा ही मज़ा है।
स्कूल- कालेज के नाम पर खुल गई हैं दुकानें,
किसी भी दुकान जाइए बाज़ार सजा है।
बड़े -बड़े बैनर हैं होर्डिंग चमकीले पर्चे,
आपको जो भा जाए बाज़ार सजा है।
ऑफर हैं आकर्षक चाहिए 'गर दाखिला,
धंधे के लिए ही तो ये बाज़ार सजा है।
हुकूमत की नाकों तले होती है तिजारत,
इम्तिहानों में भी क्या है! बाज़ार सजा है।
बड़े -बड़े फ़रमान हैं नज़रें सीसीटीवी की,
उन नज़रों से बचाने को बाज़ार सजा है।
दुकानदार कौन हैं नेता मंत्री अधिकारी,
कुबेर के ख़ज़ानों का ये बाज़ार सजा है।
शिक्षक हैं न प्रिंसिपल छात्र भी दिखते नहीं,
दाखिला -इम्तिहान को बाज़ार सजा है।
शानदार बिल्डिंग है बाग औ' बगीचे भी,
चकाचौंध करने को ये बाज़ार सजा है।
चार - चार संकाय में चार भी शिक्षक नहीं,
क्या शिक्षकों को देने को बाज़ार सजा है?
पल्लेदारों से कुछ अधिक औकात नहीं शिक्षक की-
मालिकों की नज़रों में, बाजार सजा है।
शिक्षक की मजबूरी गृहस्थी भी पलनी है,
शिक्षक - मजदूरों का बाज़ार सजा है।
पाँचवीं का बोध नहीं साइंस ग्रेजुएट को,
अल्फाबेट सिखलाने बाज़ार सजा है।
बॉटनी की स्पेलिंग न ज्योग्राफी की वर्तनी,
यही सब पढ़वाने बाज़ार सजा है।
शिक्षक को हड़काकर नकल तो करनी है,
इज्ज़त को बिसरा दे बाज़ार सजा है।
प्लास्टिक के इस युग में इलास्टिसिटी कितनी है,
"शुभम" कौन पढ़े भकुआ बाज़ार सजा है।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें