रविवार, 22 जुलाई 2018

कीचड़

कौन कितना कीचड़ उछाल पाता है
अपनी सियासत  का रंग निखार पाता है।

दूध से धुलकर  वो  निकला घर से बाहर
शाम को कीचड़ में तन सान लाता है।

झाँककर  क्यों देखता नहीं गरेबां अपना
बाहर निकलते ही क्यों उफ़ान लाता है।

किसके कीचड़ की महक ज्यादा महकती है
ये  अखबार और मीडिया बताता है।

बिक गया हो  मिडिया जब दलदल में
कोई पैमाना है जो सच दिखाता है!

दिखाता है मीडिया जो उसे  भाए
शेष सब  कुछ को दबा जाता है।

आदमी के मन को भांप पाया न कोई
एक्जिट पोल भी "शुभम" बिक जाता है।

💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ.भगवत स्वरूप"शुभं"

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