जिसके मनाने वाले हों
वही रूठा करते हैं,
मोबाइल का जमाना है
कौन किससे रूठेगा ,
इसलिए रूठना मना है,
भाग्यशाली है वह
जिसका मनाने वाला बना है।
रूठने -मनाने का अपना
अलग ही आनन्द है,
जैसे मानवती नायिका का
एक अपना ही छंद है,
रूठ जाने में प्यार की
ताज़ा खुशबू है,
कोई अपना भी है
इसकी भी हाँ-हूँ है,
स्वार्थपरता ने उड़ा दी
प्यार की महकती हवा,
अकेलेपन की अब तो
मोबाइल है दवा ,
रूठने में कितने कितने
ऊपरी ठनगन ,
मनाने के भी हुनर
न जानें सब जन।
जिनके पांवों में
कभी फ़टी हो बिवाई,
जान पाते हैं वही
किसी की पीर पराई।
पीर की अपनी
अलग ही मिठास है,
रूठ जाने की पीर में
प्यार का आभास है।
वो पीर पैदा करो कि
कोई हमें मनाए,
तभी तो रूठ जाने का
आनन्द कमाएं।
आज भी जिंदा है
वही रूठना -मनाना,
बशर्ते दिल में हो
वही नज़रिया पुराना।
पत्नी का पति से
प्रेयसि का प्रिय से
रूठना -मनाना ही
तो जान डाल देता है,
वरना "शुभम" कौन
आज किसे मान देता है!
💐शुभस्मस्तु!
रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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