जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवशि नरक अधिकारी।।
गोस्वामि तुलसीदास की उक्त पंक्तियाँ पढ़ने के बाद स्वतः दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है। किंतु आज की सियासत में धृष्टता भी उच्च कोटि की है, सत्य को स्वीकार करना तो सिखाया ही नहीं गया। जैसे भी हो चित भी मेरी पट्ट भी मेरी, अनटा मेरे बाप का। हमारा शासन और प्रशासन चाहे जितना खराब हो, अपना दोष स्वीकार करने में बहुत लाज आती है।शासक और सहयोगी को दिख रहा है कि उलटी गिनती शुरू हो चुकी है,10,9,8...... , लेकिन वे ये मानने को तैयार नहीं हैं, कि कुछ और ही चमत्कार होने वाला है। पर अति आत्म विश्वास (OVER CONFIDENCE) इतना अधिक है कि आत्मा की आवाज़ भी नारों के शोर गुल में दब कर रह गई है। चारों ओर त्राहि -त्राहि मची हुई है , पर उसे सुनने वाला कोई भी नहीं है। पेट्रोल के दाम आकाश चुम रहे हैं , महंगाई मुंह बाए खड़ी हुई है, अखबार बलात्कारों की खबरों से पटे पड़े हैं, ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब दस बीस ऐसी खबरें छप नहीं जातीं। न सड़कें सही हालत में हैं, न बारिश में गलियों के पानी का उचित निकासी का माध्यम ही है। अखबारों में जब कभी साफ सफाई के समाचार और फोटोमय सुर्खियाँ देख कर मन हरा हो जाता है।अदालतों में केसों की भरमार हो रही है। प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का त्वरित इंतज़ाम करने में आत्म निर्भरता नहीं है। आग लगने के बाद फायर ब्रिगेडब की गाड़ी पहुंचने तकब सब स्वाहा हो जाता है। धन हानि और जन हानि की पूर्ति के लिए कुछ राशि की घोषणा करके आंसूं पोंछने का कार्य किया जाता है। परन्तु क्या उससे किसी की जान , इज्जत या अन्य हानि की क्षतिपूर्ति संभव है? केवल कोरे नारों की। बुलंद आवाज़ से समस्याओं का समाधनव नहीं हो सकता। सब कुछ वैसे ही चल रहा है, तो निज़ाम बदलने से जनता को क्या मिला? जनता तो हर पाँच साल में एक कड़वे अनुभव के बाद बदलाव लाती है, लेकिन जब सभी बोतलों में जब एक ही शराब भरी हो और लेबिल अलग -अलग चस्पा हों तो क्या फर्क पड़ता है!! कभी नागनाथ तो कभी साँपनाथ, बात एक ही है।
जनता को केवल विकास चाहिए।आज के युग में कोई भी मतदाता इतना मूर्ख भी नहीं है। उसे सब कुछ दिख रहा है। दलों के प्रति अंधे लोगों ने जनता को बरगलाने की खूब कोशिश की है , की जा रही है। मति के अंधे और किसी इज़्म से प्रभावित लोगों का पिछलग्गूपन देश को बरबाद कर रहा है। अंततः सबक सबको मिलता है, जिस राजा के राज में जनता को न्याय नहीं मिलता , वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है।
शुभमस्तु
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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