रीति पुरातन अब लों चलि आई।
छोटी मछली बड़ी नें खाई।।
जलचर जंगल नियम बराबर।
थलचर जीवें थलचर खाकर।।
बाज खाय पिड़कुली परेवा।
जान बचावें निज कुल सेवा।।
बिल्ली चूहा की बैर कहानी।
सब जानें क्या और बतानी?
शेर खाय जंगल के प्राणी ।
सिंहासन की यही कहानी।।
नेता नेता का है दुश्मन।
इसीलिए रहता नित बनठन।।
माल बिकाऊ परदे परदे।
पहले कर में रोकड़ भर दे।।
एक मेज पर एक ही जाम।
एक ही मुद्दा एक मुकाम।।
पर संसद में लड़ते ऐसे ।
जन्म -जन्म के दुश्मन जैसे।।
खों -खों खों -खों खें-खें खें-खें।
ज्यों मंडी में मछली बेचें।।
तोड़ दिया मानव मानवता।
जाति - भेद कर तोड़ी जनता।।
बना आदमी शत्रु मनुज का।
सिर्फ सियासत की यह कृतिका।।
सरकारें सरकार का भोजन।
चलना नहीं सात सौ योजन।।
कुछ रिज़ॉर्ट में पिकनिक करते।
कुछ कुर्सी -तलाश में रहते।।
रातों रात बदलते पाले।
बहुमत को पड़ जाते लाले।।
निष्ठा नामक कोई न चिड़िया।
खुद खाने को आनन भिड़ीया।।
'सरकारः सर्कारस्य भोजन।'
"शुभम"यही क्या सत अनुमोदन !
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप "शुभं"
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