कुछ लोगों को ये कहते हुए सुना गया है और पत्रिकाओं में भी लिखा गया है कि ये सतयुग चल रहा है। कितना विरोधाभास है वर्तमान युग और ऐसे महापुरूषों के कथन में! आदमी आदमी को खा रहा है, चबा रहा है , फिर भी सतयुग आ रहा है। नेता , अधिकारी, कर्मचारी , कर्मचारी -सब आम आदमी को खाने को तैयार , फिर भी सतयुग की सरकार। नित्य प्रति दृष्ट अदृष्ट बलात्कार, नारी पर महा अत्या - चार -फिर भी सतयुग की भरमार।केवल और केवल पैसा कमाने की होड़, उसके लिए चाहे अनाचार के पार करने पड़ें कितने मोड़, माता पिता ,बाप बेटे, भाई बहन, पति पत्नी , स्वामी सेवक आदि सभी के सम्बंध कैसे चल रहे हैं ,ये किसी से छिपा नहीं है।फिर भी ये सतयुग है? घोर कलयुग का अभी तो आरम्भ भी नहीं है। आये दिन प्राकृतिक आपदाएं जन -धन की हानि कर रही हैं, यहाँ भी हमारी ससमजिक, राजनीतिक बनावट और बनावट जिम्मेदार है। सब जानते और देखते हुए भी हम आँखें बंद किए बैठे हैं। यदि हजार करोड़ लोग भी अनीति के समर्थक हो जाएं तो भी क्या
महाभारत टल सकता है? सत्य की ही सदा जीत होती है, होती रही है और होती भी रहेगी। दबाव , अनीति औऱ अनाचार की धरती पर टिकी हुई राजनीति कभी देश का भला नहीं कर सकती। खरीद -फरोख्त की सियासत देश को सैकड़ों वर्ष पीछे रसातल में ले जा रही है। पर उन्हें तो केवल अपना झंडा ऊँचा करने से मतलब।दिखावटी नारों से देश नहीं चलता।जहाँ जीवन का हर क्षेत्र भृष्टाचार से दुर्गन्धयुक्त है , वहाँ कोई बतला दे कि इनमें से कौन दूध का धुला है? बातों के बताशे खिलाने से मुँह मीठा नहीं हो सकता। मूर्खता अपनी पराकाष्ठा पार कर चुकी है। इंसान का नैतिक पतन इतना अधिक हो चुका है कि जिसकी भी दुम उठ जाती है , मादा ही निकलता है- चाहे वह देश का बड़े से बड़ा अधिकारी हो, सांसद, विधायक , मंत्री, न्यायविद, पुलिस , सिविल सर्विस मेन-मौका हाथ लगने पर चूक नहीं सकता।
इस देश में सिर्फ और सिर्फ वही ईमानदार , नैतिकता वान और श्रेष्ठ पुरुष /स्त्री है, जिसे मौका नहीं मिला । यदि उसे मौका मिलता ,तो वह भी वही करता , जो यत्र तत्र सर्वत्र हो रहा है। आज जो कुछ भी देश की राजनीति, प्रशासन, समाज, धर्म के क्षेत्र , क्या सतयुग यही है। कोई किसी की सुनने , मानने को तैयार नहीं है।राजनीति के चरणों तले प्रशासन मजबूर है। बिना राजनीतिक रिमोट के एक एफ आई आर भी नहीं लिखी जाती।और बड़े -बड़े खूनी , बलात्कारी, रिश्वतखोर, डकैत , भृष्ट लोग एक फोन की घन्टी पर ही मुक्त कर दिए जाते हैं। सब कुछ एक ही छत्रछाया में हो रहा है। क्या यही सतयुग के लक्षण हैं ? ये भी पूर्णतः सत्य है कि
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवशी नरक अधिकारी।।"
पर यहाँ तो बहुमत का खेल है, सच कहने वालों की जेल है।। ये बहुमत कितने कारनामों का फल है! उनके लिए तो हरिद्वार का गंगाजल है। उसकी शीतलता में गोते लगाए जा। सतयुग आ गया है नारा लगाए जा।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभं"
महाभारत टल सकता है? सत्य की ही सदा जीत होती है, होती रही है और होती भी रहेगी। दबाव , अनीति औऱ अनाचार की धरती पर टिकी हुई राजनीति कभी देश का भला नहीं कर सकती। खरीद -फरोख्त की सियासत देश को सैकड़ों वर्ष पीछे रसातल में ले जा रही है। पर उन्हें तो केवल अपना झंडा ऊँचा करने से मतलब।दिखावटी नारों से देश नहीं चलता।जहाँ जीवन का हर क्षेत्र भृष्टाचार से दुर्गन्धयुक्त है , वहाँ कोई बतला दे कि इनमें से कौन दूध का धुला है? बातों के बताशे खिलाने से मुँह मीठा नहीं हो सकता। मूर्खता अपनी पराकाष्ठा पार कर चुकी है। इंसान का नैतिक पतन इतना अधिक हो चुका है कि जिसकी भी दुम उठ जाती है , मादा ही निकलता है- चाहे वह देश का बड़े से बड़ा अधिकारी हो, सांसद, विधायक , मंत्री, न्यायविद, पुलिस , सिविल सर्विस मेन-मौका हाथ लगने पर चूक नहीं सकता।
इस देश में सिर्फ और सिर्फ वही ईमानदार , नैतिकता वान और श्रेष्ठ पुरुष /स्त्री है, जिसे मौका नहीं मिला । यदि उसे मौका मिलता ,तो वह भी वही करता , जो यत्र तत्र सर्वत्र हो रहा है। आज जो कुछ भी देश की राजनीति, प्रशासन, समाज, धर्म के क्षेत्र , क्या सतयुग यही है। कोई किसी की सुनने , मानने को तैयार नहीं है।राजनीति के चरणों तले प्रशासन मजबूर है। बिना राजनीतिक रिमोट के एक एफ आई आर भी नहीं लिखी जाती।और बड़े -बड़े खूनी , बलात्कारी, रिश्वतखोर, डकैत , भृष्ट लोग एक फोन की घन्टी पर ही मुक्त कर दिए जाते हैं। सब कुछ एक ही छत्रछाया में हो रहा है। क्या यही सतयुग के लक्षण हैं ? ये भी पूर्णतः सत्य है कि
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवशी नरक अधिकारी।।"
पर यहाँ तो बहुमत का खेल है, सच कहने वालों की जेल है।। ये बहुमत कितने कारनामों का फल है! उनके लिए तो हरिद्वार का गंगाजल है। उसकी शीतलता में गोते लगाए जा। सतयुग आ गया है नारा लगाए जा।
💐शुभमस्तु!
©✍🏼डॉ. भगवत स्वरूप"शुभं"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें