उन्होंने मुझे पूछा-
'कितने की चलेगी?
मैंने उनसे कहा -
अब तो भैया पचास के
ऊपर की ही चल पाएगी,
पचास से नीचे की
कैसे चल पाएगी?
वह तो अपने दायरे से
बाहर ही चली जायेगी,
जमाने के हिसाब से
अनमेल हो जाएगी!
देखने वालों की नज़रों में
एकदम फेल हो जाएगी!
पचास से ऊपर की ही
अब तो ठीक है ,
देखते नहीं ये आँखों वाले
कितने हो गए ढीठ हैं!!
कुछ तो वक़्त के हिसाब
होना चाहिए मेल!
वरना देखनी पड़
जाएगी हमें जेल!!
28-30 की होती तो मजबूत है,
ये देखो मेरे पास एक ही सुबूत है,
पर ये पतली तो अजर -अमर है,
हजारों वर्ष तक सुरक्षित सफ़र है,
पर बहुत घातक है माँ के लिए,
विषैली और मारक जहाँ के लिए।
वे फिर पूछ बैठे -
बता मोटी या पतली?
मैंने कहा -
पतली तो हालत कर देगी पतली,
इसीलिए तो पॉलिसी बदली,
छाने लगी है खतरे की बदली,
पतली के वे जमाने लद गए,
बनाने हैं अफ़साने नए-नए !
फ़रमान तो देख लिया ,
अरमान भी तो देखने हैं,
दुनिया की निगाहों के
तीर -कमान भी झेलने हैं!
अब तो उस पतली वाली को
दिलो -दिमाग से भूल जाओ,
पचास से ऊपर की मोटी से
खुशी से फूल जाओ,
इस पॉली ने तो ऐसी
पोल पा ली है!
इस इंसान से अपनी दोस्ती
गहरी ही बना ली है,
पर अपने पर्यावरण के हित
पूरी सत्यानाशी है,
इसीलिए तो यहाँ छाई
भारी विकट उदासी है,
अपने जमाने की बात
पुरानी याद करो,
'थिन' को बिसराकर
'थिक' से ही "शुभम"
काज करो।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ©
डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"
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