तुम क्या जानो बीती बातें,
भीगे दिन और गीली रातें,
रिमझिम बुँदियों की बरसातें,
प्रकृति- पुरुष रहते मदमाते,
चातक-चोंच बून्द दो स्वातें,
तुम क्या जानो बीती बातें।
वृक्ष - लताओं में हरियाली,
पड़ते झूले अमुआ डाली,
बढ़ा पेंग झूली सब आली ,
नरम घास मखमल सी सारी,
चुहल ठिठोली मीठी बातें,
तुम क्या जानो.......
जुगनू लालटेन ले आया,
झींगुर ने संगीत सुनाया,
टर - टर दादुर ढोल बजाया,
दीप - नेह परवान चढ़ाया,
काली घटाटोप घन रातें,
तुम क्या जानो .......
वीर बहूटी शरमाती है,
मखमल लाज मरी जाती है,
लाल रेशमी रंग चमकाती,
रेंग - रेंग धरती पर जाती,
ना दिन झुलसे उमसी रातें,
तुम क्या जानो....
सावन भादों रिमझिम बरसे,
प्रोषितपतिका पिय को तरसे,
पपीहा कोकिल उर में हरषे,
मोर - मोरनी क्रीड़ा करते,
बीत गईं मनहर बरसातें,
तुम क्या जानो ....
पकी निबौली टपके जामुन,
झूले राधा अमवा - कुंजन,
झोटा दे रहे कान्हा सांवल,
पेंग बढ़ाते दे - दे झोटन,
वे दिन लौट नहीं अब पाते,
तुम क्या जानो....
कजरी औऱ मल्हारों के दिन,
रिमझिम मंजु फुहारों के दिन,
बूरा खाने - खिलाने के दिन,
श्वसुरालय में जाने के दिन,
सलहज साली की प्रिय बातें,
तुम क्या जानो .....
सास ससुर साले पद पूजें,
कुशल-क्षेम सादर सब बूझें,
घेवर - साली खीझें - रीझें,
पर जीजाजी नहीं पसीजें,
गोपनीय वे सारी बातें,
तुम क्या जानो ....
सुबह जाएँगे लेकर घर को,
कहे सास पूछो जी ससुर को,
ससुर कहें सासू की चलती,
वे ही जानें लली - गमन की ,
किससे अनुमति लेकर जावें,
तुम क्या जानो....
"शुभम" वक़्त बदला सब बदला,
बादल भी है बदला बदला,
जो दल सहित वो बादल होता,
ना बिखरा कोई बादल होता,
ना वे बादल ना बरसातें,
तुम क्या जानो बीती बातें।।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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