-एक सुझाव -
इस समय प्रदेश में हज़ारों पशु , विशेषकर पालतू गायें सड़कों , रेलवे ट्रेकों ,खेतों , गांव और कस्बों में आवारा रूप से घूम फिर रही हैं। इससे सड़कों पर आवागमन में बाधा उत्पन्न होने के साथ -साथ किसानों की खड़ी हरी औऱ पकी हुई फसलों को भी हानि हो रही है। इसका कहीं कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा है। रेलवे ट्रेकों पर घूमते हुए रेल दुर्घटना होने की निरन्तर आशंका भी बनी रहती है। ऐसी अनेक दुर्घटनाएं हुई भी हैं।कभी कोई भैंस , भैंसा या गायें आए दिन दुर्घटनाओं के कारण बन रहे हैं। इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए सरकार को निजी तथा सरकारी स्तर पर आवारा पालतू पशु पालक परियोजना केंद्र खोलने लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।सरकार के अपने के केंद्र प्रत्येक जिले में होने चाहिए।निजी तौर पर खोलने के लिए अनुदान की व्यवस्था भी होने चहिए । इन सभी केंद्रों में एक प्रबंधक ,कुछ प्रशिक्षित सुपरवाइजर, औऱ आवारा पशुओं को केंद्र में लाने के लिए मानदेय आधारित कर्मचारियों की भर्ती की जानी चहिए। प्रबंधक इन केंद्रों पर सुबह से शाम और शाम से सुबह तक प्रबंधन का कार्य करेंगे। इस प्रकार रात औऱ दिन कर अलग अलग प्रबंधक मासिक वेतन पर रखे जाने चाहिए , जिनकी योग्यता पशुपालन में स्नातक से कम नहीं होनी चहिए। केंद्र पर अन्य कर्मचरियों को न्यूनतम इंटर उत्तीर्ण होना चाहिए। जिनकी 6-6 महीने की ट्रेनिंग के बाद में केंद्र पर तैनाती की जानी चहिए।इनका काम पशुओं की देखभाल के साथ -साथ उनका चारा ,पानी , स्नान , दूध दुहना , उनके दूध को बेचने की व्यवस्था में सहयोग करना, गोबर और मूत्र का उचित प्रबंधन आदि आदि कार्य होने चहिए। केंद्र के कर्मचारियों की ड्यूटी सुबह 8 से दोपहर 2 बजे और दोपहर 2 बजे से शाम 8 बजे तक रहनी चहिए। रात में दो तीन चौकीदारों की व्यवस्था भी अनिवार्य होगी। जो लोग आवारा पशुओं को केंद्र पर लाये, उनकी प्रतिपशु के अनुसार मानदेय दिया जाना चाहिए। इसके लिए भी कम से कम हाई स्कूल उत्तीर्ण कर्मचारी होने चहिए। ये वेतन पर आधारित नहीं होंगे। इससे जो किसान या पशु स्वामी दूध देना बन्द होने के बाद आवारा छोड़ देते हैं, उन पर ही रोक लग जाएगी। यदि फिर भी किसी का पशु किसी के खेत में फसल चरते हुए या सड़क आदि पर आवारा मिल जाए , तो उसे भी केंद्र में भर्ती करना चहिए। यदि पशु स्वामी पशु की सही पहचान देकर पशु प्राप्त करना चाहे तो , निर्धारित जुर्माना वसूल कर सकी रसीद देकर पशु लौटा देना चाहिए। केंद्र के पशुओं के गोबर औऱ मूत्र का समुचित प्रबंधन करने के लिए गोबर गैस प्लांट लगाकर उसकी गैस को पाइप लाइन से लोगों को बेचा जा सकता है। गोबर से कम्पोस्ट औऱ गोमूत्र के संग्रह के बाद उसका औषधीय उपयोग हेतु प्रबंधन किया जा सकता है। इस प्रकार केंद्र के दूध दे ने वाले पशुओं के दूध, मूत्र और गोबर का सदुपयोग किया जा सकता है। कमजोर , वृद्ध और बीमार पशुओं को अलग रखकर उनके भी गोबर और मूत्र को काम में लिया जा सकता है। पशुओं के लिए पेयजल व स्नान आदि लिए सबमर्सिबिल पम्प भी लगाने होंगे। उनके उपचार लिए एक स्थायी पशु चिकित्सा अधिकारी भी रखे जाने चाहिए। किसी पशु के मरने पर उसके मृत शरीर के निस्तारण की व्यवस्था भी प्रबंधक के दायित्व में शामिल होगा।इस प्रकार अवश्यक्तानुसार अनेक व्यवस्थाएं करनी होंगीं। इस व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों की अनेक समस्याओं का स्वतः समाधान हो जाएगा। लड़ाई झगड़े नहीं होंगे। फ़सल आवारा पशुओं से सुरक्षित रहेंगी। सरकारें इस ओर ध्यान दें , तो समस्या का समाधान कोई बड़ी बात नही है। इससे बेरोजगारी की समस्या से भी पर्याप्त मदद मिलेगी। युवा वर्ग का भटकाव कम होगा। पर्यावरण प्रदूषण पर भी नियंत्रण होगा।
शुभमस्तु!
लेखक ©
डॉ.भगवत स्वरूप "शुभ"
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