वे शिकारी हैं तो शिकार करते हैं,
दाने उछालते हैं शिकार करते हैं।
हर रोज़ नई चिड़िया की तलाश रहती है,
फंदे में फँसते ही शिकार करते हैं।
सभी ने जालों में लगाए हैं ए सी कूलर,
ठंडी हवाओं में शिकार करते हैं।
भोली जनता को समझ रखा चिड़िया,
बदल -बदल के दाने शिकार करते हैं।
हर बार वही मीठी झूठी बातें,
बातों -बातों में शिकार करते हैं।
पूरी हो जाएं जरूरत तो नहीं आती चिड़िया,
भूखी -प्यासी चिड़िया का शिकार करते हैं।
कभी पानी तो कभी दाना नहीं मिलता,
घोंसले भी नहीं हैं शिकार करते हैं।
गौरेया कबूतर के बाज हैं लीडर,
बाज -लीडर ही शिकार करते हैं।
"शुभम" ये कौवे तो बड़े घाघ रहे,
निरीह फाख्ता का शिकार करते हैं।
💐शुभस्मस्तु!
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें