इंद्रसेना शिव-तप तप किया,
माँग लिए वर पाँच।
पाँच बार 'वर दो ' कहा,
अगले जन्म वर साँच।।
मिले पाँच वर द्रौपदी,
पांडव अगले जन्म।
विधि का लिखा न मिट सका,
माता कुंती धन्य।।
बार - बार जप कर रहे,
आ लू! आ लू !! रोज़।
ये किसान स्टोरेज के स्वामी,
जैसी उनकी सोच।।
आलू - कृषक अन्धा हुआ,
हो गया सिर का गंज।
इसीलिए कहते इसे ,
कस्बा सिरसागंज।।
आलू की गोलाई पर,
फेरा करे किसान।
सब्जी फल या अन्न का,
नहीं तनिक भी ध्यान।।
तन में आलू लुढ़कता,
भेजा आलू फुल्ल।
सावन के अंधेन को ,
दीखे आलू कुल्ल।।
आलूमय भण्डारगृह,
खांदी सड़क सड़ाँध।
नाक बंद आगे बढ़े,
आलू ! आलू!! याद।।
शीतगृह की वायु का,
ऐसा शीत प्रभाव।
सपने में आलू दिखे ,
आलू का ही चाव।।
शुभचिंतक जो दीखते,
किया न कभी विचार।
मात्र तिजोरी - भक्त वे,
सब किसान लाचार।।
वायु - प्रदूषण हो रहा,
गैसें चारों ओर।
अमोनिया की गंध से,
उठें न नभ घन घोर।।
मानसून आये मगर,
बादल उड़ - उड़ जायँ।
पूरब - पश्चिम बरसते ,
सिरसागंज में छाँव।।
कभी चले ठंडी हवा ,
कभी घाम का तेज।
तन से बहता स्वेद बहु,
इंद्रदेव जल भेज ।।
आ लू ! आ लू!! रट लगा,
पपीहा हुआ किसान ।
लो लू ही तो आ रही,
फिर क्यों हो हैरान।।
स्टोरेज के स्वामीजन ,
निशि -दिन आलू टेर।
कर्ज़ बोझ से दब गया,
कृषक हो गया ढेर।।
पर्यावरण के शत्रु हैं ,
स्टोरेज और किसान।
वर्षा क्यों हो खेत में,
जब आलू भगवान।
सोच - समझ आलू हुई,
गोलम गोल - मटोल।
कभी -कभी तो क्षेत्रजन ,
अपनी बुद्धि टटोल ।।
चैनल और अखबार सब ,
धरे हाथ पर हाथ।
पत्रकार गूँगे बने ,
मुँह पर पट्टी बांध।।
पढ़े -लिखे विद्वान सब,
आलू रूप लुभाय।
सम्मोहित विक्षिप्त - से ,
घर - घरनी। बिक जाय।।
निकट अगरा शहर है ,
आलू की ही खान।
आग भले उगले गगन ,
पर आलू मगन किसान।।
ठेका सारे देश का ,
लिया है फिर क्या होय!
सिरसागंज से आगरा ,
तू आलू ही बोय।।
शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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