समाज से हूँ समाज की बात करता हूँ,
बीत गया जो कल आज की बात करता हूँ।
कितना ख़ुदपरस्त हो गया है ये इंसां,
दो -दो जीभों के जज़्बात की बात करता हूँ।
उछाल रहे हैं जो और के दामन पे कीचड़,
चिनगारियों से लगी आग की बात करता हूँ।
देश का ठेका लिए सिर पे उठाये फिरते हैं,
झूठ के शहद लिपे बयांबाजों की बात करता हूँ।
कितने भोले आश्वासनों पे यकीं करते हैं,
जुमले उछालने वाले कलाबाजों की बात करता हूँ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पे पत्थर मारने वालो,
अदब का बंदा हूँ आदाब की बात करता हूँ।
बोलना ही नहीं बहुत सुनना भी ज़रूरी है,
रूह भी बोलती है उस आवाज़ की बात करता हूँ।
वायदे वादों ने बाँटा है हमें टुकड़ों में,
जो निभाए न गए उन अल्फ़ाज़ की बात करता हूँ।
जाने किस ओर जा रहा है "शुभम" गोल धरती पर,
चल तो पड़ा ही हूँ मन्ज़िल की बात करता हूँ।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ""©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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