कीचड़ उछाल सियासत है,
ये सब अपनी ही विरासत है!!
कोई गधा कहे कोई कहता गुंडा
कर्णधारों की ये हालत है।
पोल खोल का 'नाटक ' चलता
नेताजी का स्वागत है ।
कोई सुनता नहीं किसी की
अपनी पुरानी आदत है।
ढप- ढप बजती सबकी ढपली
सुरा बेसुरा गावत हैं ।
सबको चाहिए ऊँची कुर्सी
काम लेय ठुकरावत हैं ।
तेल लगावत जाय -जाय दर
बाद तेल लगवावत हैं ।
अब मत जानो भोली जनता
काहे को सतरावत है?
खा गए पी गये मौज मजा कर
मन की कोई न जतावत है।
लिख -पढ़ पाए न सीधी जनता
ऐसी नीति बनावत हैं।
नकल करावें सो बड़े अच्छे
शासन वो मुस्कावत है।
बेसिक शिक्षक बनाम रसोइया
खाना बनाइ खवावत हैं ।
प्रतिभा भाग अमरीका जावे
निज धरती ठुकरावत है।
काला अक्षर ध्वजा चढ़ावें
'जनगण मन ' हम गावत हैं।
आई ए एस फाइल ले ठाड़ो
'उनसे ' साइन करावत हैं।
गाम छोड़ि शहरनु को धायो
बेसिक में न पढ़ावत है।
क्या विकास की परिभाषा
गामन की अलग बतावत हैं??
कैसे हो उद्धार देश का
अलग ही नियम बनावत है ।
पारदर्शिता बस भाषण में
अंधकार फैलावत हैं।
भला करे भगवान देश का
'शुभम' सत्य यह गावत है।।
इति शुभम।
--डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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