बुधवार, 25 जुलाई 2018

सौंदर्य

   माँ को अपना एक आँख का बेटा भी संसार के सभी लड़कों में सर्वप्रिय , सर्वश्रेष्ठ और सर्व सुंदर होता है। भले ही उसका दर्शन दुनिया के लोगों का शगुन बिगाड़ देता हो। उन्हें असुंदर लगता हो। एक ही व्यक्ति या वस्तु एक के लिए सर्वसुन्दर और अन्य के लिए पूरी तरह असुंदर। फिर सुन्दरता का मानक क्या हुआ? सुंदरता व्यक्ति सापेक्ष नहीं, मनः स्थिति के सापेक्ष होती है। इसीलिए  कोई चीज किसी को बहुत सुंदर लगती है तो किसी को उसमें कोई सौंदर्य ही दिखाई नहीं देता। अर्थात सौंदर्य मन का विषय है।मनोगत है।  यही कारण है कि हम  जिसके प्रति आसक्त होते हैं , वह हमें प्रिय लगता है, सुंदर दिखता है । लेकिन जब हमारी आसक्ति कम हो जाती है तो उसमें कमियां ही कमियाँ ही नज़र आने लगती हैं। आसक्ति समाप्त  होने पर मित्र शत्रु बन जाता है। उसकी सारी अच्छाइयां बुराईयों में बदल जाती हैं। वह पूरी तरह असुंदर हो जाता है।
   अपने को सुंदर दिखाने के लिए लिए  पुरुष और महिलाएँ अनगिनत प्रकार के बाहरी सौंदर्य प्रसाधन प्रयोग करते हैं। इससे  देह की चमड़ी अपने वास्तविक रूप को छोड़कर कृत्रिम रूप धारण कर लेती है औऱ संबंधित व्यक्ति आईने के सामने खड़े होकर अपने को सुन्दर मानने लगता है। लेकिन उसका ये बनावटी सौंदर्य क्या सबको आकृष्ट कर सुंदर लगता है? कोई आवश्यक नहीं है।तन को तो अस्थाई रूप से बदल सकते हैं , लेकिन क्या मन को भी बदल पाते हैं? नहीं न !
   जब मानव का आंतरिक  सौंदर्य क्षीण होने लगता है , तब वह बनावटी साधनों की ओर आकर्षित होकर क्रीम , पाउडर, लिपस्टिक  , परफ्यूम आदि साधनों को सुंदरता का साधन मानकर ऊपरी चमक -दमक में घुस जाता है। कभी कभी इन साधनों की अतिशयता से सौंदर्य विकृत हो जाता है और आदमी भ्रम में जीने लगता है कि वह सुंदर लग रहा है। यह असली सौंदर्य नहीं है। कोयल और कौआ काले होते हैं , लेकिन वसंत ऋतु आने पर जब कोयल की मधुर वाणी गूँजती है , और कौआ कांव - 2 करता है तो कोयल की प्रियता कई गुना बढ़ जाती है और कौआ उतना प्रिय नहीं लगता।  इससे यह स्पष्ट हुआ कि गुण ही सौंदर्य का कारण है।
   सौंदर्य किसी मजबूरी का नाम नहीं है। कुछ लोग कहते हैं की अमुक स्त्री या पुरुष हमें बहुत अच्छा लगता है, लेकिन ये नहीं पता कि क्यों ?  इसमें भी कोई न कोई अज्ञात आंतरिक कारण छिपा हुआ है। भले ही हम उसे न समझ पाए हों, या व्यक्त करने की क्षमता न हो। सौंदर्य आंतरिक होता है , बाहरी नहीं। बाहरी सौन्दर्य अस्थाई और अस्थिर होता है। परिवर्तनशील है। जब  शारीरिक रूप से व्यक्ति कमजोर होता है , तभी वह आवरण  रूप कुछ ऐसा आच्छादन करने लगता है , जिससे उसकी वह कमी नज़र नहीं आए। लेकिन शेर की खाल ओढ़कर गीदड़ शेर नहीं बन सकता। उसकी पोल जल्दी ही खुल जाती है। जैसे नज़र की कमजोरी चश्मे से छिपाई जाती है, गंज को विग के नीचे गोपन किया जाता है ,चेहरे के धब्बे औऱ श्यामलता क्रीमों से दूर करने का असफल प्रयास किया जाता है। लेकिन आज तक संसार की कोई भी क्रीम किसी को गोरा बना सकी है? नहीं। फिर भी आदमी अपने को भ्रम में डालकर पोते जा रहा है। जबकि उसे मालूम है कि ये सब झूठ है। झूठे विज्ञापनों के  आकर्षण में जान बूझकर उल्लू बनता है। और प्रतिवर्ष हजारों टन क्रीम पाउडर देह पर पोतकर धो दिया जाता है। पूँजीपतियों के कारखाने कैसे चलेंगे ?इसी तरह ही तो।  स्वतः भरम में रहकर जीना और ओवर शो करना आज के इंसान का दैनिक क्रम बन गया है।  यदि यह मान लिया जाए कि किसी क्रीम  आदि से कोई गोरा हो जाए । उस स्थिति में उसका चेहरा तो गोरा बन जाए और शेष जिस्म यथावत सांवला या काला ही रह जाए तो उसका सौंदर्य चार चाँद वाला न होकर एक चाँद वाला भी नहीं रहेगा। क्योंकि अधिकांषतः महिला या पुरुष केवल चेहरे को ही चमकाते हैं, शेष जिस्म पर कौन लगाता है!  यदि ऐसा होने लगे तो दाल ,सब्जी और आटे से अधिक क्रीम की जरूरत होगी, जो कुछ पाउच या डिब्बियों में न आकर ड्रमों में लानी पड़ेगी। फिर तो गली गली फेस क्रींम नहीं, बॉडी क्रीम के कारखाने ऐसे खुल जाएंगे , जैसे। आटे की चक्कियाँ। खाने से ज्यादा चमकाने  की चिंता में  चंचल नर नारी जीवन ही कुछ औऱ हो जाएगा। सुंदरता इन शीशियों , पाउचों या डिब्बों  में नहीं है । हमारे आपके गुणों और अंतर में है। जिसे पहचानने की ज़रूरत है। मानव की दृष्टि में है।स्वार्थ में नहीं, परमार्थ में है। स्वहित में नहीं, जन हित  में है।

💐शुभमस्तु!

✍🏼लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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